भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ चेहरे हुए, जो सिर्फ पर्दे पर अभिनय ही नहीं किया बल्कि समाज के सोचने के ढंग को भी बदल दिया। 1970 के दशक में जब हीरोइन को सिर्फ “सुशील, संस्कारी और शर्मीली” दायरे में बांधा जाता था, उस दौर में एक नाम ऐसा था, जिसने पर्दे पर परंपराओं को झकझोर कर मॉडर्न, बोल्ड और आत्मविश्वास से लबरेज एक नया स्त्री रूप गढ़ा। इस ग्लैमरस अदाकारा का नाम था “जीनत अमान”।
उनके जीनत अमन बनने के पीछे एक लंबा सफर, कई जख्म, और कई मोड़ छुपे हुए थे। उनका जन्म 19 नवंबर 1951 को मुंबई में हुआ था तथा उनके पिता अमानुल्लाह खान एक नामी लेखक थे, जिन्होंने मुगल-ए-आज़म और पाकीज़ा जैसी क्लासिक फिल्मों के संवाद और पटकथा लिखे थे। उनका स्क्रीन नाम “अमन” था। जीनत की मां वर्धिनी एक हिंदू महिला थीं, जो बाद में एक जर्मन से विवाह कर विदेश चली गईं।
बचपन के जख्म के साथ संघर्ष की शुरुआत हुई।
जब जीनत सिर्फ सात साल की थीं, तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया। इससे भी बड़ा सदमा तब लगा जब 13 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पंचगनी में पूरी की और फिर स्कॉलरशिप से विदेश में पढ़ाई के लिए कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी गईं, लेकिन वहां की पढ़ाई अधूरी ही रही। भारत लौटने के बाद उन्होंने मॉडलिंग की शुरुआत की और 1970 में मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और दूसरे स्थान पर रहीं। वहीं से उनकी किस्मत पलटी और फिर वो मिस एशिया पैसिफिक इंटरनेशनल बनीं, यह खिताब जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला थीं।
अभिनय की शुरुआत और करियर की उड़ान।
साल 1970 में उनकी पहली फिल्म द एविल विदिन आई जिसमें उन्होंने देव आनंद के साथ काम किया, लेकिन व्यवसायिक रूप से असफल रही। इसके बाद देव साहब की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने 1971 में हरे राम हरे कृष्ण में मौका दिया। जीनत इस समय विदेश जाने की तैयारी कर रही थीं, लेकिन देव आनंद ने उन्हें फिल्म की रिलीज तक रुकने को कहा। फिल्म सुपरहिट रही और दर्शकों ने उन्हें एक नए अवतार में देखा तथा फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। एक ड्रग एडिक्ट वेस्टर्न लड़की, जो “दम मारो दम” जैसे गाने में खुलकर नाचती-गाती है और ये उस समय की पारंपरिक अभिनेत्रियों से यह बिल्कुल अलग छवि थी। इस फिल्म की सफलता ने जीनत को रातोंरात स्टार बना दिया।
जहाँ अन्य अभिनेत्रियां “इमेज” के डर से बोल्ड रोल करने से हिचकती थीं, वहीं जीनत बिना झिझक हर तरह के किरदार निभाने को तैयार थीं। निर्माता-निर्देशक उन्हें उन विषयों पर भी साइन करने लगे, जिनसे बाकी कलाकार दूर रहते थे।

सिनेमा की पारंपरिक सीमाओं को तोड़कर बनीं ‘नॉन-कन्वेंशनल’ हीरोइन।
1973 में बी.आर. चोपड़ा की ढूंढ में उन्होंने एक डरी हुई पत्नी का किरदार निभाया, वहीं नासिर हुसैन की म्यूजिकल फिल्म यादों की बारात में उन्होंने ग्लैमर का तड़का लगाया। इस फिल्म में उन्होंने अपने कॉस्ट्यूम्स (वस्त्र) खुद चुने, जो उस दौर की एक्ट्रेसेस के लिए असामान्य था।
हीरा पन्ना, इश्क इश्क, मनोरंजन, अजनबी, रोटी कपड़ा और मकान, वारंट, धर्मवीर, डॉन जैसी एक के बाद एक हिट फिल्में और हर फिल्म में उनका किरदार एकदम अलग था।
“रोटी कपड़ा और मकान” में उन्होंने एक ऐसी महिला का अभिनय की, जिसने प्रेमी को छोड़कर संपन्न जीवन चुना जो बेहद प्रगतिशील और गहरा किरदार था।
वो किसी एक ढांचे में फिट नहीं होती थीं, और जीनत की यही सबसे बड़ी खूबी थी। वे हर फिल्म में अलग रंग, अलग अंदाज़ के साथ आती थीं और ये उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में शामिल रखा।
1978 में “डॉन” में उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ लीड रोल निभाया, और फिल्म उस वर्ष की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म बनी।
राज कपूर निर्देशित फिल्म “सत्यम शिवम सुंदरम” और ’रूप’ का किरदार।
1978 की राज कपूर निर्देशित फिल्म “सत्यम शिवम सुंदरम” के लिए एक खास अभिनेत्री की तलाश थी। जीनत को जब पता चला कि फिल्म में जले हुए चेहरे वाली एक लड़की ‘रूप’ का रोल है, तो उन्होंने अपने चेहरे पर टिशू पेपर से नकली जलन का मेकअप किया और आर.के. स्टूडियो पहुंच गईं। राज कपूर उनकी यह समर्पण देखकर इतने प्रभावित हुए कि उन्हें फिल्म में उस भूमिका के लिए चुन लिया।
सत्यम शिवम सुंदरम में जीनत का अभिनय उनके करियर का सबसे बेहतरीन और चुनौतिपूर्ण माना जाता है। इस फिल्म में उन्होंने सिर्फ सुंदरता नहीं, बल्कि भीतर की पीड़ा और भावनात्मक गहराई को भी पर्दे पर दिखाया।
ग्लैमर के पीछे निजी जीवन की दर्दभरी दास्तान।
एक तरफ जीनत की प्रोफेशनल लाइफ चरम पर थी, वहीं निजी जीवन बहुत जटिल रही। देव आनंद उनसे प्यार करते थे, पर जीनत ने 1978 में संजय खान से शादी कर ली। यह रिश्ता घरेलू हिंसा और विवादों में रहा,यहां तक कि एक होटल में संजय खान ने उनके साथ मारपीट की, जिसकी तस्वीरें तक मीडिया में भी आईं। बाद में जीनत का नाम अभिनेता कमलजीत से जुड़ा, लेकिन यह रिश्ता भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ा।
1985 में उन्होंने अभिनेता और निर्देशक मजहर खान से शादी की जो मजहर की दूसरी शादी थी। शुरुआत में सब कुछ ठीक रहा, लेकिन शादी के कुछ समय बाद मजहर का किसी और महिला से अफेयर शुरू हो गया। जब जीनत प्रेग्नेंट थीं, तब वे गहरे मानसिक तनाव में थीं। उन्होंने अपने बच्चों के लिए रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “शादी के एक साल बाद ही समझ आ गया था कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है।”
बिना खुशी के जीनत ने 12 साल तक यह रिश्ता निभाया। मजहर की तबीयत खराब रहने लगी, जीनत ने उनकी काफी देखभाल किया। लेकिन जब वे ठीक हुए तो जीनत ने उन्हें छोड़ दिया और साल 1998 में मजहर का निधन हो गया।
निजी जीवन के तमाम झंझावत के बावजूद उनका साहस असमान्य रही।
1980 के दशक में ज़ीनत का करियर धीरे-धीरे ढलान पर आने लगी। न्याय का तराज़ू जैसी फिल्मों ने उनकी अभिनय क्षमता को आगे रखा, लेकिन शादी और परिवार पर ध्यान केंद्रित करने के कारण वे फिल्मों से दूर हो गईं। 1990 के बाद जीनत ने फिल्मों से दूरी बना ली, लेकिन विवाद उनका पीछा नहीं छोड़ते थे। 2018 में उन्होंने बिजनेसमैन अमन खन्ना पर रेप और धोखाधड़ी का आरोप लगाया। केस दर्ज हुआ और आरोपी को गिरफ्तार भी किया गया। इन सबके बावजूद जीनत ने कभी हार नहीं मानी। वे एक फाइटर रहीं, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी की हर लड़ाई डटकर लड़ी।
1999 में भोपाल एक्सप्रेस में संक्षिप्त वापसी और 2003 में बूम जैसी इंडिपेंडेंट फिल्मों के माध्यम से उन्होंने फिल्मों में कुछ उपस्थिति बनाए रखी। फिर पानिपत (2019) में एक कैमियो भी किया।
जीनत ने अभिनय जगत में आधुनिक महिला की एक नई परिभाषा पेश की।
1970 और 80 के दशक की फिल्मों में जब हीरोइनें सिर्फ “प्रेमिका” या “माँ” के रोल में सीमित होती थीं, जीनत ने एक नए तरह की महिला को पर्दे पर पेश किया जो खुले बालों, सिगरेट और वेस्टर्न कपड़ों के साथ आत्मविश्वास से भरपूर होती थी। उन्होंने “भारतीय नायिका” की परंपरा को तोड़ा और उसे आधुनिकता, स्वतंत्रता और ग्लैमर का नया चेहरा दिया। उनकी ये छवि परवीन बाबी जैसी अभिनेत्री पर भी गहरा प्रभाव छोड़ गई लेकिन जीनत बेजोड़ रहीं।
जीनत की कहानी सिर्फ एक अभिनेत्री की नहीं है बल्कि उन्होंने भारतीय सिनेमा में स्त्री पात्रों को बोल्डनेस, ग्लैमर, ह्यूमैनिटी और हकीकत से जोड़ा। उन्होंने अभिनय की दुनिया से औरत की पहचान नए सिरे से गढ़ा और दिखाया कि इनकी पहचान सिर्फ "इज्ज़त" या "त्याग" से नहीं होती बल्कि उसकी आज़ादी, उसकी सोच और उसके चुनाव से होती है। उनकी कहानी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा है कि कैसे आप मुश्किल हालातों में भी सिर उठाकर चल सकती हैं, कैसे आप अपनी पहचान खुद गढ़ सकती हैं।
आज जीनत अमन एक आइकन हैं जो अपने दौर की सबसे बोल्ड, सबसे बेफिक्र, और सबसे बेमिसाल नायिका रही हैं !