जिबूती (Djibouti) अफ्रीका का एक छोटा सा देश जहां पर सिर्फ 10 लाख लोगों की आबादी है। ये देश अफ्रीका के हॉर्न (Horn of Africa) में आता है जिसके बारे में एशिया में तो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये छोटा सा देश पूरी दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण भू–राजनीतिक क्षेत्र है क्योंकि यहां पर लगभग दुनिया के सारे बड़े देशों की सैन्य अड्डा है।
अगर जिबूती को देखा जाए तो यहां अमेरिका की सैन्य अड्डा है जो पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में अमेरिका की इकलौती सैन्य अड्डा है। इसी तरह यहां पर फ्रांस की दो मिलिट्री बेस हैं और फ्रांस की बेस के बिल्कुल पास जापान की मिलिट्री बेस है, जो किसी भी दूसरे देश में जापान की इकलौती मिलिट्री बेस है। जापान के साथ ही इस तरफ इटली की मिलिट्री बेस है, और समुद्र के साथ फ्रांस की एक नौसेना बेस भी है, जिसके बिल्कुल साथ ही जर्मन और स्पेनिश फौजियों के कैंप्स हैं। दूसरी तरफ यहां चीन की एक बहुत बड़ी नौसेना अड्डा है।
इंडिया, रूस और सऊदी अरब की गवर्नमेंट्स भी जिबूती की गवर्नमेंट के साथ मिलिट्री बेस सेटअप करने के लिए डील्स कर रहे हैं। देखा जाए तो जिबूती शायद दुनिया का वो इकलौता देश है जिसमें इतने सारे देश की सैन्य अड्डे हैं।
आखिर जिबूती में ऐसी क्या बात है कि दुनिया की सारी बड़ी सुपरपावर्स ने इधर अपनी मिलिट्री बेस सेटअप की हुई हैं ?
जिबूती की भौगोलिक स्थिति ही इसे दुनिया में महत्वपूर्ण बनाती है। जिबूती यमन के बिल्कुल सामने बाब अल-मंडब स्ट्रेट के पश्चिम में है। बाब अल-मंडब जलडमरूमध्य 26 किलोमीटर की एक पतली सी जगह है, जहां से सारे समुद्री जहाज हिंद महासागर को पार करते हुए लाल सागर में प्रवेश करते हैं, और फिर स्वेज कैनाल को पार करके मेडिटेरेनियन सागर में पहुंचते हैं, जिससे यूरोपीय देशों तक ट्रैफिक जाता है।
वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति बाब अल-मंडब जलडमरूमध्य के रास्ते पर निर्भर है।
असल में कहें तो एशिया और मिडल ईस्ट को यूरोप से जोड़ने का यह सबसे कम दूरी वाला रास्ता है, और यही चीज इसे बहुत जिओपॉलिटिकली इंपॉर्टेंट बना देती है। खासकर अगर हम तेल और गैस सप्लाई की बात करें तो पूरी दुनिया की 10% तेल और 6% नेचुरल गैस की सप्लाई इसी 26 किमी के इसी स्ट्रेट से गुजरती है।
पर्शियन गल्फ में दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस भंडार हैं। पूरी दुनिया का 50% तेल और 40% नेचुरल गैस इन्हीं कंट्रीज के पास है। ईरान, इराक, कुवैत, बहरीन, कतर, सऊदी अरब, यूएई और ओमान जैसे देशों में पूरी दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस रिजर्व्स हैं। इसलिए पर्शियन गल्फ 21वीं सदी की सबसे इंपॉर्टेंट जियोग्राफिकल लोकेशन बन चुकी है। इन देशों से तेल और गैस समुद्री जहाजों में लोड होकर बाब अल-मंडब से गुजरते हुए एशिया और यूरोप तक पहुंचता है।
अगर यह रास्ता किसी वजह से बंद हो जाए तो यूरोपियन इकोनॉमी जबरदस्त क्राइसिस में चली जाएगी। क्योंकि फिर यूरोप पहुंचने का एक ही रास्ता बचेगा जो अफ्रीका को पूरा पार करते हुए है वो बहुत लंबा, महंगा और खतरनाक है।
ऐसा ही कुछ हुआ था मार्च 2021 में जब स्वेज कैनाल में एक शिप फंस गई थी, जिससे वर्ल्ड इकोनॉमी को $9.6 बिलियन का नुकसान हुआ था।
सऊदी अरब के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह रास्ता ?
सऊदी अरब के पास दुनिया के 15% प्रूवन ऑयल रिजर्व्स हैं, और उसकी 80% एक्सपोर्ट इनकम तेल से आती है। उसकी अर्थव्यवस्था का 46% हिस्सा तेल पर आधारित है। उसका ज्यादातर तेल पर्शियन गल्फ से ही निकलता है, और वहां से सीधे रेड सी तक ले जाने के लिए 1200 किमी की पाइपलाइन बनाई गई है। लेकिन इस पाइपलाइन और स्ट्रेट को सबसे बड़ा खतरा ईरान और यमन से है।
ईरान ने स्ट्रेट ऑफ हॉरमुज को बंद करने की धमकी कई बार दी है और यमन के हूथी विद्रोही जो ईरान समर्थित हैं, सऊदी की इस पाइपलाइन को कई बार निशाना बनाने की कोशिश की है। इसलिए सऊदी अरब अब जिबूती में अपनी मिलिट्री बेस बना रहा है ताकि वह किसी भी हमले पर तत्काल जवाबी कार्रवाई कर सके।
क्यों महत्वपूर्ण हो गया है यूरोपियन यूनियन और चीन के लिए बाब अल-मंडब जलडमरूमध्य ?
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने यूरोप की गैस सप्लाई बंद कर दिया। अब यूरोप को गैस कतर से मंगवानी पड़ती है, जहां दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गैस रिजर्व्स हैं। चूंकि कतर से कोई पाइपलाइन यूरोप तक नहीं जाती इसलिए कतर अब गैस को LNG में बदलकर विशेष टैंकर जहाज से स्वेज कैनाल होते हुए यूरोप भेज रहा है और यह रूट भी बाब अल-मंडब से ही होकर गुजरता है।
चीन की 30% मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट्स भी इसी रूट से यूरोप और नॉर्थ अमेरिका तक पहुंचती हैं इसलिए चीन को भी इस रास्ते की सुरक्षा बहुत ज़रूरी लगती है। अमेरिका इस रूट पर मिलिट्री बेस बनाकर बैठा है ताकि वो इस रूट पर नजर रख सके और चीन या किसी और कंट्री को इस पर कंट्रोल ना करने दे।
क्यों जरूरी समझते हैं सभी सुपरपावर्स यहां अपने सैन्य अड्डे ?
इतने सारे देशों की मिलिट्री बेस होने की सबसे वजह ये भी है कि यह पूरा रीजन बहुत अस्थिर और खतरनाक है। एक तरफ यमन है जो सिविल वॉर में घिरा हुआ है और दूसरी तरफ इरिट्रिया, इथोपिया, माली जैसे देश हैं जहां कानून व्यवस्था की हालत खराब है। और फिर सोमालिया भी है जहां से समुद्री डाकुओं का खतरा बना रहता है। इसीलिए सारे बड़े देशों ने जिबूती में मिलिट्री बेस बनाना शुरू किया ताकि वैश्विक व्यापार को इन खतरों से बचाया जा सके।
सभी सुपरपावर्स ने सैन्य अड्डे के लिए जिबूती ही क्यों चुना ?
जिबूती पूरे अफ्रीकन रीजन में सबसे पीसफुल कंट्री मानी जाती है और इस पर अफ्रीका काफी हद तक डिपेंड भी करता है। खासकर इथोपिया, जो कि लैंडलॉक्ड है और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट के लिए जिबूती का ही इस्तेमाल करता है।जिबूती एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे कोई देश अगर सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखे, तो उसकी भौगोलिक स्थिति उसे बहुत अमीर और महत्वपूर्ण बना सकती है।
पाकिस्तान, इंडिया और अफगानिस्तान भी है दुनिया के क्रॉसरोड पर स्थित लेकिन क्या है मौजूदा हालात
"क्रॉसरोड ऑफ द वर्ल्ड" का मतलब होता है ऐसा इलाका जहाँ अलग-अलग सभ्यताएँ, व्यापारिक मार्ग और राजनीतिक ताकतें मिलती हैं। भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से सिल्क रोड, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच का मार्ग रहा है। आज भी यह क्षेत्र भू-राजनीतिक (Geopolitically) रूप से बहुत ही संवेदनशील और महत्वपूर्ण है तथा इसमें चीन, रूस, अमेरिका और पश्चिम एशिया सबकी दिलचस्पी है। अंग्रेजों के आने से पहले यह भारतीय उपमहाद्वीप दुनिया के सबसे अमीर इलाकों में से एक था और आज भी अगर इन देशों की सरकारें समझदारी से काम लें तो ग्वादर और मुंबई का पोर्ट दुनिया का सेंटर बन सकता है !



