हसन और मुआविया की संधि से कर्बला तक: इस्लाम के इतिहास की निर्णायक जंग !

साल 680 ईस्वी में अरब की तपती रेत पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जिसने न केवल इस्लाम के इतिहास की दिशा बदल दी, बल्कि इसे हमेशा के लिए दो धड़ों में बांट दिया। यह कर्बला की लड़ाई थी, यह एक ऐसी जंग थी जिसमें केवल 72 लोग एक भारी-भरकम सेना के सामने डटकर खड़े हुए, और अपनी जान देकर भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
यह जंग सिर्फ तलवार और ढाल की भिड़ंत नहीं थी, बल्कि यह थी सत्य और न्याय के लिए दी गई कुर्बानी की मिसाल थी। आज भी, इस जंग की याद में हर साल मुहर्रम के महीने में 10वीं तारीख को दुनियाभर के मुसलमान मातम मनाते हैं, हुसैन की शहादत का जुलूस निकालते हैं और अत्याचार के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा लेते हैं।

पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु और क्या था पहला मतभेद

8 जून 632 ईस्वी को इस्लाम के आखिरी पैगंबर, मोहम्मद साहब का देहांत हो गया। उनकी मृत्यु के बाद सवाल उठा कि इस्लाम की अगुवाई कौन करेगा? मुस्लिम समुदाय के सामने खलीफा चुनने का मुद्दा आया और यहीं से मतभेद शुरू हो गए।
एक गुट का मानना था कि खलीफा पैगंबर की ब्लडलाइन से होना चाहिए, यानी उनके ही किसी परिवारजन को यह पद मिलना चाहिए। इस गुट ने पैगंबर के चचेरे भाई और दामाद अली इब्न अबी तालिब का नाम सुझाया जो आगे चलकर शिया कहलाया।
दूसरा गुट चाहता था कि खलीफा का चुनाव मुस्लिम समुदाय स्वयं करे,जो किसी वंशानुगत प्रणाली के आधार पर नहीं हो और यह गुट आगे चलकर सुन्नी कहलाया। सुन्नियों की राय मानी गई और पहले खलीफा बने अबू बकर तथा उनके बाद उमर और उस्मान खलीफा बने जो सभी सुन्नी थे।

अली का खलीफा बनना और गृहयुद्ध की शुरुआत

साल 656 में आखिरकार अली खलीफा बने लेकिन तब तक उनकी उम्र ढलान पर थी और उनके विरोधी भी बहुत थे। सीरिया के गवर्नर और उस्मान के रिश्तेदार मुआविया अली के खिलाफ थे। मुआविया ने अली से उस्मान की हत्या के लिए न्याय की मांग की, जिससे टकराव और बढ़ गया।
अली को पैगंबर की विधवा आयशा ने भी चुनौती दी, और “कैमल की लड़ाई” जैसी गृहयुद्ध की घटनाएं हुईं। ये आंतरिक संघर्ष इस्लामिक इतिहास में फित यानी “गृहयुद्ध” के नाम से दर्ज हैं। हालांकि अली ने यह लड़ाई जीती, लेकिन उनकी स्थिति कमजोर होती गई। 661 में जब वे नमाज़ पढ़ने जा रहे थे, उनकी हत्या कर दी गई।

क्या था हसन और मुआविया की संधि और उसकी शर्ते

अली की मौत के बाद उनके बड़े बेटे हसन खलीफा बने और उनकी कोशिश थी कि एकता बनी रहे, लेकिन राजनीतिक हालात युद्ध की ओर बढ़ रहे थे। हसन की सेना में भी कई लोग मुआविया से प्रभावित थे या फिर युद्ध के इच्छुक नहीं थे। कूफ़ा की फौज में अनुशासन की कमी और विश्वासघात की घटनाओं ने हसन को महसूस कराया कि लंबा युद्ध उम्मत को और तोड़ देगा। लगातार खून-खराबा रोकने के लिए उन्होंने मुआविया से संधि की और इस संधि में तय हुआ कि मुआविया जीवनभर न्यायप्रिय शासक रहेंगे और वंशानुगत शासन नहीं करेंगे लेकिन यह वादा ज़्यादा दिन नहीं टिक सका।

हसन और मुआविया के बीच की संधि “सुल्ह हसन” की शर्तें

खून-खराबा रोकना — दोनों पक्ष युद्ध बंद करेंगे और मुसलमानों के बीच शांति स्थापित की जाएगी।
• मुआविया का शासन — मुआविया को खलीफ़ा माना जाएगा, लेकिन वे अपने बाद किसी को उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं करेंगे।
• न्याय और कुरआन-सुन्नत के अनुसार शासन — मुआविया इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार प्रशासन चलाएंगे।
• अली के समर्थकों पर प्रतिशोध नहीं — हसन और अली के अनुयायियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं होगी।
• हसन को आर्थिक और सम्मानजनक सुरक्षा — उन्हें तयशुदा भत्ते और सम्मान प्राप्त रहेगा।

हुसैन का नेतृत्व और यजीद का सत्ता में आना

  • 670 में हसन की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई हुसैन कुफा (आज का इराक) में बानू हाशिम कबीले के नेता बने और यही कबीला पैगंबर मोहम्मद का भी था।
  • 676 में मुआविया ने संधि का उल्लंघन करते हुए अपने बेटे यजीद को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यजीद की छवि एक भ्रष्ट, क्रूर और अत्याचारी शासक की थी।
  • 680 में मुआविया की मृत्यु के बाद यजीद खलीफा बना और उसने हुसैन से वफादारी की मांग की, लेकिन हुसैन ने मना कर दिया।

यदीज से तंग होकर कुफा के लोगों ने हुसैन से मांगी मदद

यजीद के अत्याचारों से तंग आकर कुफा के लोगों ने हुसैन को खत लिखे और उन्हें समर्थन का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि वे हुसैन को सत्ता सौंपना चाहते हैं। हुसैन ने मक्का से अपने परिवार और कुछ साथियों के साथ कुफा जाने का निर्णय लिया। लेकिन जब तक वे वहां पहुंचते, यजीद के गवर्नर ने विद्रोह कुचल दिया और कुफा के लोग डर के मारे पीछे हट गए।
अब हुसैन के पास सिर्फ 72 लोग थे, जबकि सामने यजीद की बड़ी सेना खड़ी थी। मुहर्रम के सातवें दिन यजीद के कमांडर ने हुसैन के कैंप की पानी की आपूर्ति रोक दी। तपते रेगिस्तान में प्यास से हुसैन और उनके साथी बेहाल हो गए, लेकिन वे झुके नहीं। नौवीं रात को हुसैन ने अपने साथियों को जाने की अनुमति दी, यह कहते हुए कि दुश्मन सिर्फ उन्हें चाहता है लेकिन कोई भी पीछे नहीं हटा।

आशूरा की सुबह हुई कर्बला की जंग

10 मुहर्रम की सुबह जंग शुरू हुई और हुसैन के साथी एक-एक करके युद्ध में गए और शहीद हो गए। उनके बेटे अली अकबर, भाई अब्बास और यहां तक कि उनकी गोद में बैठा छोटा बच्चा भी तीर से मारा गया।
आखिर में, हुसैन खुद मैदान में उतरे, उन पर तीर, तलवार और भालों से हमला हुआ और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। यजीद की सेना के कमांडर सनान ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। हुसैन के 72 साथियों में उनके परिवार के कई सदस्य शामिल थे जिसमें बेटे, भाई, भतीजे और पोते भी थे। उनके शवों के कपड़े और सामान लूट लिए गए, महिलाओं के गहने छीन लिए गए, और परिवार को कैद कर लिया गया।

जंग का असर ऐसा हुआ कि हमेशा के लिए पड़ी दरार

कर्बला की जंग सिर्फ एक सैन्य संघर्ष नहीं थी, बल्कि यह सिद्धांत और नैतिकता की लड़ाई थी। इसने इस्लाम को हमेशा के लिए शिया और सुन्नी में बांट दिया तथा हुसैन अत्याचार के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गए। उनकी शहादत ने आगे चलकर यजीद और उम्मयद खलीफा के खिलाफ कई विद्रोहों को जन्म दिया, जिनसे उनकी सत्ता का पतन हुआ।
आज भी मुहर्रम के 10वें दिन दुनियाभर में शिया मुसलमान मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं और हुसैन की कुर्बानी को याद करते हैं।
दुनिया भर में करोड़ों लोग कर्बला की घटना को केवल शोक के रूप में नहीं, बल्कि नैतिकता और बलिदान के प्रतीक के रूप में याद करते हैं। हुसैन की शहादत हमें यह अहसास कराती है कि सिद्धांतों की रक्षा के लिए कभी-कभी सबसे बड़ा त्याग करना पड़ता है।

कर्बला की ये जंग दिखाती है कि संख्या या ताकत से ज़्यादा मायने रखता है सिद्धांत और न्याय के लिए खड़ा होना। हुसैन जानते थे कि वे युद्ध नहीं जीत पाएंगे, लेकिन उन्होंने अन्याय के आगे झुकने से इंकार किया। उनकी कुर्बानी इस बात का संदेश देती है कि सत्ता चाहे कितनी भी ताकतवर हो, सच्चाई के लिए दी गई बलिदान हमेशा इतिहास में अमर हो जाता है।
कर्बला की लड़ाई सिर्फ इस्लाम के इतिहास का एक अध्याय नहीं, बल्कि यह इंसानी जज़्बे, साहस और नैतिकता की सबसे बड़ी मिसाल है। सच्चाई के रास्ते पर चलना कठिन है, लेकिन अंततः वही रास्ता सही है।

Share Article:

Considered an invitation do introduced sufficient understood instrument it. Of decisively friendship in as collecting at. No affixed be husband ye females brother garrets proceed. Least child who seven happy yet balls young. Discovery sweetness principle discourse shameless bed one excellent. Sentiments of surrounded friendship dispatched connection is he. Me or produce besides hastily up as pleased. 

Leave a Reply

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Struggler Desk

Endeavor bachelor but add eat pleasure doubtful sociable. Age forming covered you entered the examine. Blessing scarcely confined her contempt wondered shy.

Follow On Instagram

Recent Posts

  • All Post
  • आस्था
  • खेल
  • टेक्नोलॉजी
  • न्यूज़
  • फाइनेंस
  • ब्लॉग
  • मनोरंजन
  • राजनीति
  • रोज़गार
  • लाइफस्टाइल
  • विधि
  • विविध
  • शख़्सियत

News With Soul

Questions explained agreeable preferred strangers too him her son. Set put shyness offices his females him distant.

Tags

Edit Template

परिचय

हमारा उद्देश्य है हर उस आवाज़ को मंच देना, जिसे अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। StugglerDesk पर हम विश्वास करते हैं तथ्यों पर आधारित निष्पक्ष पत्रकारिता में, जहाँ खबर सिर्फ खबर नहीं, जिम्मेदारी होती है।

हाल की पोस्टें

  • All Post
  • आस्था
  • खेल
  • टेक्नोलॉजी
  • न्यूज़
  • फाइनेंस
  • ब्लॉग
  • मनोरंजन
  • राजनीति
  • रोज़गार
  • लाइफस्टाइल
  • विधि
  • विविध
  • शख़्सियत

© 2025 Created with Ompreminfotech

hi_INहिन्दी
Powered by TranslatePress