“द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना” की दीवार जितना लोकप्रिय है इसका इतिहास उतना ही ज्यादा रहस्यमय है। द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना दुनिया की सबसे लंबी दीवार है लेकिन यह कोई सीधी दीवार नहीं है बल्कि कई टुकड़ों में मिलकर बनी है आज भी इस दीवार के कई हिस्से तो एक दूसरे से समानांतर हैं और अलग-अलग दिशाओं में फैले हुए टुकड़ों को जोड़कर इस दीवार की कुल लंबाई 21196 किमी आंकी गई है। अब इस दीवार का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है लेकिन साल 1985 में लियू युतियन और उसके दो दोस्तों ने एक सिरे से दूसरे सिरे तक ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का सफर पूरा करने का दावा किया था जिसमें उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। यह दीवार पार करने में उन्हें 510 दिन यानि करीब 17 महीने लगे थे इन तीनों के बाद आज तक कोई इंसान इस दीवार को पार नहीं कर पाया है।
आइए जानते हैं द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के रहस्य
चीन के नॉर्थ साइड में बनी इस दीवार के रास्ते में ऊंचे पहाड़, सूखा रेगिस्तान ,बर्फीले इलाके, नदी, तालाब और समुद्र जैसी कुदरत की विविध रचनाएं देखी जा सकती हैं जिनके बीच यह दीवार लहराती हुई नजर आती है। शायद इसलिए चीन के लोग इस दीवार को कोटोन ड्रैगन कहते हैं यानी पत्थर का एक ड्रैगन जो विदेशी आक्रमणकारियों से बचाने में उनकी मदद करता है। ग्रेट वॉल ऑफ चाइना को देखने से लगता है इसका कुछ हिस्सा सूखे रेगिस्तान में फैला हुआ है तो कुछ हिस्सा इतनी ऊंची और संकरी पहाड़ियों पर भी है जहां चढ़ पाना भी नामुमकिन सा लगता है। इन पहाड़ियों के आसपास घने जंगल फैले हुए हैं ऐसे में उस दौर में ग्रेट वॉल बनाने वाले मजदूरों ने काफी कष्ट सहा होगा। 2000 सालों तक लगातार इस दीवार का काम करना काफी मुश्किल रहा होगा, जिसे बनाने में 5 लाख लोगों की जान चली गई। तालाब, रेगिस्तान और पहाड़ से गुजर कर समुद्र तक फैली यह दीवार ना सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा मैन मेड स्ट्रक्चर है बल्कि सात अजूबों से भी एक है।
द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का ड्रैगन के साथ क्या है कनेक्शन ?
वास्तुकला का बेजोड़ नमूना चीन के इस दीवार के बारे में वहां की आबादी का बड़ा हिस्सा एक कहानी में यकीन करता है कि हजारों साल पहले एक ड्रैगन ने उड़कर इस दीवार का रास्ता तय किया था जिसका पीछा करते हुए मजदूरों ने इस दीवार को बनाया। दरअसल चीनी मान्यताओं में ड्रैगन को ऊर्जा आभा और दिव्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है जो उनकी रक्षा करता है इसे पानी की तरह जीवन देने वाला सामर्थ्य बुद्धि और अच्छाई का सूचक भी बताया जाता है। चीन की इस दीवार को बुराइयों से रक्षा करने वाला माना जाता है जो चीन में सुव्यवस्था का पर्याय है ।
इतिहासकारों के अनुसार इस दीवार का निर्माण कब हुआ था ?
चीनी इतिहास में 2000 साल पहले जब चीन के शानजा प्रांत में रहने वाले लोगों ने खेती–बाड़ी करना शुरू किया था, वह येलो रिवर के पानी से अपने खेत की सिंचाई किया करते थे। उस दौर में चीन के पास मंगोलिया, मंचूरिया और शिंजियांग जैसे साम्राज्य फैले हुए थे लेकिन उन साम्राज्य में खासकर मंगोलिया के उपजाऊ जमीन नहीं थी बल्कि वहां हजारों किलोमीटर लंबे रेगिस्तान फैले हुए थे इसलिए वहां के लोग पशुपालन पर निर्भर थे। वहीं नजाई प्रांत के लोग व्यवस्थित तरीके से रहते थे जबकि मंगोलों के कई बिखरे कबीले थे जो हमेशा शानजाई प्रांत में घुसकर लूटपाट मचाते और उनके धन और अन्य सामानों को चुरा ले जाते थे।
इस समस्या से बचने के लिए चीन के लोगों ने अपना एक राजा चुना और सीमा परिभाषित किया। किन शी हुआंग चीन का पहला शासक बना और 223 बीसी में उसने चीन की महान दीवार बनाने का काम शुरू कराया। लेकिन इतनी लंबी दीवार बनाना किसी एक साम्राज्य के लिए मुमकिन नहीं था बल्कि उनके बाद कई साम्राज्य ने इस दीवार को बनाने में अपना सहयोग दिया था और इस दीवार को पूरी तरह से बनाने में 2000 साल लग गए थे। इस दौरान राजाओं ने अपने दौर के सबसे बेहतरीन वास्तुविदों को इस दीवार में काम में लगाया और इसे बनाने में 20 लाख से भी अधिक मजदूरों ने योगदान दिया था। चीन की ग्रेट वॉल बनाने के लिए सभी चीनी साम्राज्य बड़ी संख्या में आम लोगों की भर्ती करते थे साथ ही इनमें कैदियों का भी इस्तेमाल किया जाता था,उन्हें सजा के तौर पर चार सालों तक दीवार बनाने के लिए भेज दिया जाता था।
हजारों साल पहले जब सीमेंट का आविष्कार नहीं हुआ था तब इतनी मजबूत दीवार कैसे बना ?
ग्रेट वॉल ऑफ चाइना को बनाने के लिए ईंटों का इस्तेमाल किया गया था, मिट्टी से ईंटें बनाकर उन्हें घंटों तक भट्टी में पकाया जाता था जिससे वह मजबूत हो जाए। इन ईंटों का आकार आज की ईंटों से चार गुना बड़ा था दीवार खड़ी करने से पहले ग्रेनाइट पत्थरों से नींव तैयार की जाती थी और इसके बारी हिस्से में चीनी मिट्टी लगाई जाती थी जिससे कोई आक्रमणकारी
इन दीवारों पर आसानी से चढ़ नहीं पाए। दीवारों को जोड़ने के लिए चुने और चावल के पानी का इस्तेमाल किया जाता था। ग्रेट
वॉल बनाने में लगभग 500 बिलियन ईंटों का इस्तेमाल हुआ था।इसी से आप यह अंदाजा लगा ग्रेट वॉल चाइना को इस तरह
डिजाइन किया गया था कि इसके चारों ओर ऊंची–ऊंची दीवार हो ।
क्यों इसे दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान कहा जाता है?
इस काम को इतनी तेजी से किया गया कि मजदूरों को सालों तक अपने घर जाने का मौका नहीं मिलता था, वह दिन के 16 से 18 घंटे काम करते थे इसके बावजूद उन्हें पेट भरने जितना खाना तक नसीब नहीं होता था बल्कि चीन के क्रूर शासक उन पर काफी जुल्म ढाते थे। इन मजदूरों को कपकपाती ठंड में दीवार के आसपास ही सोना पड़ता जिससे कई मजदूरों की बीमारी से जान चली गई कई मजदूरों की भूख से तो कई मजदूर दीवार बनाते समय पास की खाई में गिर गए लेकिन दीवार का काम इतनी तेजी से चलता था कि उन मजदूरों को दफनाने के लिए पास के गांव या शहर तक भी नहीं ले जाया जाता था, उन्हें दीवार के पास ही गड्डा खोदकर दफना दिया जाता था।
ऐसा अनुमान है कि द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना बनाने में करीब 5 लाख मजदूरों की जान गई थी जिनके शव आज भी इस दीवार के पास या इनके नीचे दफन है, इसलिए चीन की इस महान दीवार को दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान माना जाता है। कुछ चीनी लोग तो इसे श्रापित भी मानते हैं इसका एक और कारण यह है कि इस दीवार को बनाने के दौरान चीन के कई राजा और उनके साम्राज्य कंगाल हो चुके थे।
आखिर क्यों किया गया था चीन के इस महान दीवार का निर्माण ?
दीवार को बनाने का मुख्य लक्ष्य राज्य की सुविधा और सुरक्षा का था इसलिए इसकी चौड़ाई इतनी रखी गई थी कि जरूरत पड़ने पर एक साथ 10 पैदल सैनिक या पांच घुड़सवार सैनिक इस पर दौड़ सकें, जहां से दुश्मन घुसपैठ करने की कोशिश कर रहा हो वहां पहुंच सके। दीवार के दोनों तरफ रेलिंग भी बनाई गई थी ताकि सैनिक नीचे ना गिरे और दुश्मन के हमलों से उनका बचाव भी हो इस दीवार में जगह-जगह पर सुराख भी बने हुए हैं कहा जाता है कि इनमें से कुछ सुराख में मोर्टार फिट की गई थी जो दुश्मनों के ऊपर गोले बरसाती थी एवं कुछ सुराख से चीन सैनिक तीर बरसाते थे।
ग्रेट वॉल में हर 100 मीटर पर एक ऊंचा वॉच टावर भी बनाया गया है जिनके ऊपर हमेशा एक सैनिक तैनात रहता था जो राज्य के उस तरफ की हलचल को मॉनिटर करते थे और अगर दिन के समय दुश्मन का खतरा महसूस हुआ तो वह झंडा फहराकर या घंटी बजाकर संकेत देते थे जबकि रात के समय आग जलाकर बाकी सैनिकों को उसकी खबर देते थे। इन वॉच टावर्स के नीचे कमरे भी बने हुए हैं जिनमें 25 सैनिक रह सकते थे, खाना खाते थे और आराम करते थे। चीन की इस दीवार में ऐसे करीब 25000 वॉच टावर्स हैं, जिनमें करीब 6 लाख सैनिक रहते थे। यहां एक और खास बात यह है कि ग्रेट वॉल में कई गुप्त सुरंगे भी बनी हुई हैं, जिन्हें लेकर कहा जाता है कि इनका इस्तेमाल चीनी सैनिक एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए किया करते थे और इनका रास्ता भी सिर्फ उन्हें ही पता है। हालांकि चीन सरकार ने कई सुरंगों को खोजा था लेकिन आज भी यहां हजार सुरंगे ऐसी हैं, जिनकी एंट्री और एग्जिट बारे में कोई नहीं जानता। यह सुरंगे अपने अंदर कई तरह के रहस्य छुपा कर रखे हुए हैं।
चीनी लोगों की मेहनत के बावजूद यह दीवार एक फेलियर क्यों मानी जाती है ?
इतनी मजबूत और बड़ी दीवार होने के बावजूद भी इसे एक व्यर्थ प्रोजेक्ट माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इतनी बड़ी और मजबूत दीवार होने के बावजूद मंगोलों और अन्य विदेशी आक्रमणकारी चीन पर आक्रमण करने में सफल हुए थे। 13वीं सदी में दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह चंगेज खान इस दीवार को लांघ कर चीन में घुसने में कामयाब रहा, जिसके बाद साल 1550 में भी मंगोलों ने चीन की इस दीवार को पार कर लिया था। बाद में साल 1644 में मांचू साम्राज्य के सैनिक ने इस दीवार को लांघ कर चीन में एंट्री की और तख्ता पलट कर दिया। जिसके बाद चीन में मिंग डायनेस्टी का शासन खत्म हुआ और किंग डायनेस्टी ने कब्जा कर लिया जो 20वीं शताब्दी तक जारी रहा। और इस दौरान मंगोलिया भी चीन का हिस्सा था यानी एक तरह से इस दीवार का कोई इस्तेमाल नहीं बचा था। हालांकि फिर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीनी सेना ने इस दीवार का इस्तेमाल अपने सिपाहियों को ट्रेनिंग देने और जापानी सेना को रोकने के लिए किया था। कुल मिलाकर “द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना” का चीनी इतिहास में काफी महत्व है और आज भी हर साल 1 करोड़ से ज्यादा पर्यटक चीन में ग्रेट वॉल देखने के लिए आते हैं।