“सीमाएं केवल हमारे मन में होती हैं, अगर हम उन्हें तोड़ दें तो कुछ भी असंभव नहीं है।”
सच में कल्पना चावला दुनिया के किसी एक कोने के लिए पैदा हुई पैदा नहीं हुई थीं, पूरा संसार ही उनका था।
कल्पना चावला के दूसरे और अंतिम मिशन पर जब अंतरिक्ष यान कोलंबिया टेक्सास, अर्कांसस और लुइसियाना के ऊपर विस्फोट हुआ, तब तक कल्पना अंतरिक्ष में अद्भुत 760 घंटे बिता चुकी थीं। उन्होंने 104 मिलियन किलोमीटर की यात्रा की थी, यानी पृथ्वी के चारों ओर 252 बार चक्कर लगाया था। वह एक साधारण लेकिन साहसी यात्री थीं, जिन्होंने सच में अपने आदर्श वाक्य “अपने सपनों का पीछा करो” को पूरा कर दिखाया।
पहली भारतीय अंतरिक्ष महिला कल्पना चावला का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1961 में हरियाणा के एक छोटे शहर करनाल में हुआ था। उनके पिता का नाम बनारसीलाल चावला और माता का नाम संज्योति चावला था। वे चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। बचपन से ही कल्पना को आकाश, सितारों और उड़ने वाली हवाई जहाजों जैसी चीज़ों में गहरी रुचि थी। उन्होंने टैगोर बाल निकेतन नामक स्थानीय विद्यालय में पढ़ाई की, जहाँ वह औसत से बेहतर छात्रा थीं। गणित तथा विज्ञान विषयों में विशेष रुचि के अलावा वे ड्राइंग, पेंटिंग और नृत्य में भी रुचि लेती थीं। उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ केवल सात लड़कियाँ थीं। वह एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने टॉप किया और इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चली गईं जहाँ उन्होंने टेक्सास यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की। तत्पश्चात कोलोराडो विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री लीं, जिसे उन्होंने 1988 में पूरा किया। वह कोलोराडो विश्वविद्यालय की दूसरी ऐसी छात्रा थीं जिनकी अंतरिक्ष मिशन में मृत्यु हुई इससे पहले एलिसन ओनिजुका की 1986 में चैलेंजर विस्फोट में मृत्यु हुई थी।
सपनों की उड़ान के लिए नासा से जुड़ना और अन्तरिक्ष यात्रा
कल्पना ने 1988 में NASA में काम करना शुरू किया। उन्होंने NASA एम्स रिसर्च सेंटर में पावर्ड लिफ्ट कम्प्यूटेशनल फ्लूइड डायनामिक्स के क्षेत्र में कार्य किया। 1993 में उन्होंने ओवर्सेट मेथड्स (लॉस आल्टोस, कैलिफ़ोर्निया) में उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। दिसंबर 1994 में NASA ने उनका आवेदन स्वीकार किया और मार्च 1995 तक उन्होंने जॉनसन स्पेस सेंटर में 15वें ग्रुप की अंतरिक्ष यात्री उम्मीदवार के रूप में रिपोर्ट किया। उनका अंतरिक्ष तक का रास्ता तकनीकी रूप से बेहद जटिल था, जिसे सामान्य व्यक्ति समझ नहीं सकता, लेकिन इससे कल्पना कभी नहीं डरीं।
उनका पहला अंतरिक्ष मिशन नवंबर-दिसंबर 1997 में हुआ, जब उन्होंने STS-87 मिशन में भाग लिया। यह 16-दिवसीय मिशन था। उन्होंने भारहीनता और सूर्य के बाहरी वायुमंडलीय परतों का अध्ययन किया। आँकड़े: 6.5 मिलियन मील की यात्रा, पृथ्वी के चारों ओर 252 चक्कर, और अंतरिक्ष में 376 घंटे 34 मिनट। उनकी इस सफलता ने न केवल उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि भारत के हर कोने में लड़कियों और महिलाओं को प्रेरित किया कि अगर इच्छाशक्ति हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।
दूसरी अन्तरिक्ष यात्रा और दुखद अंत जिसमें वो आकाश में अमर हो गयीं

पृथ्वी पर लौटने के बाद कल्पना को विभिन्न क्रू सिस्टम टास्क दिए गए, लेकिन उन्हें दोबारा जाने की तीव्र इच्छा थी। जनवरी 1998 तक वह दोबारा इस “अंतरिक्ष ओलंपिक” में भाग लेने की तैयारी में जुट गईं। उन्होंने बहुत कड़ी मेहनत की और 2000 में उन्हें STS-107 मिशन के लिए चुना गया, जिसकी लॉन्चिंग जनवरी 2003 में तय थी।
अमेरिकी अंतरिक्ष यान कोलंबिया 16 जनवरी 2003 को प्रक्षेपित हुआ। कल्पना चावला और छह अन्य लोग उस क्रू का हिस्सा थे। कोलंबिया की टीम ने अंतरिक्ष में अपने समय के दौरान 80 से अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान प्रयोग पूरे किए। 16-दिवसीय मिशन के बाद, 1 फरवरी को कोलंबिया पृथ्वी पर लौट रहा था। वह 63,000 मीटर की ऊँचाई पर था और 20,000 किमी/घंटा से अधिक की गति (ध्वनि की गति से 18 गुना अधिक) से लौट रहा था। फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर पर 8:53 सुबह (भारत में शाम के करीब 7 बजे) उतरने वाला था। लेकिन दुर्भाग्यवश वह पृथ्वी तक सुरक्षित नहीं पहुँच पाया। टेक्सास के ऊपर 207,000 फीट की ऊँचाई पर मिशन नियंत्रण का उससे संपर्क टूट गया और कुछ ही मिनटों बाद वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। अमेरिका के मानव अंतरिक्ष उड़ान के 42 वर्षों में यह पहली दुर्घटना थी जो वापसी के दौरान हुई थी।
आकाशगंगा महिला कल्पना चावला का प्रेरक व्यक्तित्व
कल्पना चावला एक विनम्र, कर्तव्यनिष्ठ और अत्यंत प्रेरणादायक व्यक्तित्व की धनी थीं। वे मानती थीं कि
– “अगर एक महिला अपने दिल से कुछ करना चाहे, तो वह सब कुछ कर सकती है। वह अपने लक्ष्य को पा सकती है।” उनकी यही सोच उन्हें हजारों किलोमीटर दूर ले गई, जहाँ उन्होंने अपने सपनों को पंख दिए और दुनियाभर के लोगों के लिए प्रेरणास्रोतबनीं। अपने देश में वह मोंटू दीदी के नाम से जानी जाती थीं और NASA में KC के नाम से। वह एक आम लड़की थीं जो अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलीं। उनके प्रयासों के कारण 1977 से हर साल NASA उनके पूर्व स्कूल के दो छात्रों को आमंत्रित करता रहा है। वह गर्व से खुद को “कल्पना चावला, करनाल, भारत” कहती थीं।
उनके उपलब्धियों के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाज़ा गया
- कांग्रेसनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर (मरणोपरांत)
- NASA Space Flight Medal
- NASA Distinguished Service Medal
- हरियाणा के करनाल में ‘कल्पना चावला प्लैनेटोरियम’
- पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में ‘कल्पना चावला छात्रवृत्ति’
- कई विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में उनके नाम पर भवन
- भारत की दो सैटेलाइट्स को ‘Kalpana-1’ और ‘Kalpana-2’ नाम दिया गया
आज भी वे युवाओं, विशेषकर लड़कियों के लिए एक प्रेरणा हैं
कल्पना चावला ने साबित कर दिया कि कठिन परिश्रम, आत्मविश्वास और निष्ठा से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने अपने सपनों को साकार कर यह सिखाया कि सीमाएँ सिर्फ हमारे मन में होती हैं। वो एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपने दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से विश्व पटल पर भारत का नाम रोशन किया। उनका जीवन यह संदेश देता है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, अगर इरादें मजबूत हो तो हम किसी भी ऊँचाई को छू सकते हैं।
कल्पना ने एक बार कहा था कि अंतरिक्ष से हमारी पृथ्वी बहुत छोटी और नाज़ुक दिखती है। यह अचंभित करता है कि हम लोग इतनी छोटी-छोटी चीज़ों और जमीन के टुकड़ों के लिए लड़ते हैं। अपने अंतिम इंटरव्यू में उन्होंने भारतीय बच्चों के लिए एक संदेश में कहा:
“सबसे तेज़ रास्ता जरूरी नहीं कि सबसे अच्छा हो। यात्रा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि लक्ष्य। प्रकृति की आवाज़ों को सुनो। अपने सपनों की ओर यात्रा में शुभकामनाएँ। हमारे नाज़ुक ग्रह की अच्छी देखभाल करो।”
उनका जीवन आज भी यही कहता है :-
“अपने सपनों की उड़ान भरो, चाहे वह उड़ान अंतरिक्ष तक ही क्यों न हो !”