अमेरिका आज वैश्विक महाशक्ति है लेकिन इसका सफ़र एक देश बनने भर की कहानी ही नहीं बल्कि आधुनिक इतिहास की सबसे क्रांतिकारी यात्रा है। आज अमेरिका के पास न केवल दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना है बल्कि ये दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है। वैश्विक व्यापार अमेरिकन डॉलर्स पर आधारित है तथा दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां भी अमेरिका में ही हैं। अमेरिका शुरु से महाशक्ति नहीं था बल्कि ये ताकत समय के साथ दूरदर्शी फैसले और नीतियों के वजह से मिली। जहां भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है वहीं अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है।
आइए जानते हैं कि कैसे हुई थी अमेरिका की खोज
पुर्तगाल का प्रिंस हेनरी, जिसे प्रिंस हेनरी “द नेविगेटर” के नाम से भी जाना जाता है, वह पूरी दुनिया में नई-नई जगहों को खोजना चाहता था। उसने समुद्र के रास्ते नई जगहों की खोज में आने वाली हर बाधा को दूर करने के लिए 1419 में स्कूल ऑफ नेविगेशन की स्थापना की थी। जब वह पूरी दुनिया का नक्शा बना रहा था और हर उस जगह पर पहुंचना चाहता था जहां तक अभी तक कोई नहीं पहुंच पाया था। उसने ऐसी जहाजे तैयार की थी जो समुद्र में तेज हवाओं और तूफानों का भी सामना कर सकती थी और उसके लोगों ने अफ्रीका के वेस्ट कोस्ट को खोज लिया था। 1460 में हेनरी की मृत्यु हो गई, पर उसके द्वारा शुरू किए गए खोजी अभियान जारी रहा। यही वो दौर था जब यूरोप के लोग भारत और पूर्व एशिया से मसालों और कीमती वस्तुओं का व्यापार करना चाहते थे।इसी सपने के साथ जब इतालवी नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस पश्चिम दिशा में समुद्री रास्ते से भारत पहुंचने का योजना बनाया। उसने सबसे पहले पुर्तगाल के राजा से मदद मांगी लेकिन कोलंबस को पुर्तगालियों का सहयोग नहीं मिला, तो वह स्पेन के राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला के पास पहुंचा। स्पेन के राजा और रानी इस मिशन में मदद करने के लिए राजी हुए और कोलंबस को नीना, पिंटा और सैंटा मारिया नाम तीन जहाज दिया।
भारत की खोज में निकला और अनजाने में नई जगह पहुंच गया कोलंबस
1492 में जब क्रिस्टोफर कोलंबस समुद्र के रास्ते भारत की खोज पर निकला और वह भारत तो नहीं पहुंच पाया पर एक नई जगह पर पहुंच गया, जो कि आज का अमेरिका है।कोलंबस उस समय बहामास द्वीपसमूह के एक द्वीप पर पहुंचा था, जहां उसे लगा कि वह भारत के किसी द्वीप पर पहुंच गया है। वहां उसे तांबे के रंगत वाले जनजातियां मिले जिन्हें उसने “रेड इंडियन” नाम दिया। इन्हीं रेड इंडियंस को अमेरिका के मूल निवासी माना जाता है और यही रेड इंडियंस आगे चलकर “अमेरिकन इंडियन” कहलाए। खैर ये भ्रम अमेरिगो वेस्पुची नामक खोजकर्ता ने दूर किए जिनके नाम पर ही अमेरिका का नाम पड़ा।कोलंबस को स्पेन के राजा ने धन दिया था, इसीलिए अमेरिका के कुछ हिस्सों पर सबसे पहले स्पेन ने अपना अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे यूरोप के बड़े देश, जैसे कि फ्रांस और ब्रिटेन भी अमेरिका को हथियाने की दौड़ में शामिल हो गए। 17वीं सदी तक स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन ने अमेरिका के बहुत से हिस्सों पर अपना अधिकार कर लिया।अमेरिका की उस धरती पर अब अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस के साथ-साथ यूरोप से प्रताड़ित लोग भी आकर बसने लगे थे, जो एक ऐसा समाज बनाना चाहते थे जिसमें सभी लोग एक समान हो। ब्रिटेन उस समय पूरी दुनिया में एक बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा था और उसने अमेरिका के एक बड़े हिस्से को अपना उपनिवेश बना लिया। ब्रिटिश उपनिवेश 1607 में जेम्सटाउन और वर्जिनिया से शुरू हुए। वहीं स्पेन और फ्रांस ने भी अमेरिका और आज के कनाडा के बड़े हिस्से पर अधिकार कर लिया था।
कैसे हुई अमेरिका में क्रांति की शुरुआत और स्वतंत्रता की प्राप्ति
क्रांति की शुरुआत तब हुई जब ब्रिटेन ने अपनी कॉलोनियों में बहुत से दमनकारी कानून लागू कर दिए। ब्रिटेन ने व्यापार पर ज्यादा से ज्यादा अधिकार जमाना चाहा और उन पर टैक्स और व्यापार को लेकर प्रतिबंध लगाए जैसे कि सारा व्यापार ब्रिटेन के रास्ते ही होगा, व्यापारियों को ज्यादा टैक्स देना होगा, कुछ सामान का व्यापार सिर्फ ब्रिटेन से ही होगा। इन सब कारणों से अमेरिका में सभी कॉलोनियों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। काफी समय तक इस विद्रोह को टाला गया, लेकिन जब फ्रांस और ब्रिटेन के बीच 7 साल का युद्ध खत्म हुआ और ब्रिटेन की जीत हुई, तब अमेरिका से फ्रांस लगभग बाहर हो गया।
1765 में स्टैंप एक्ट जैसे कानूनों के खिलाफ अमेरिका में क्रांति की शुरुआत हुई लेकिन 1775 में अमेरिका में पूर्ण आजादी की मांग शुरू हुई, जिसे अमेरिकन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस कहा गया।
4 जुलाई 1776 को थॉमस जेफरसन द्वारा लिखित Declaration of Independence पारित किया गया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) अस्तित्व में आया।
इस लड़ाई में फ्रांस ने अमेरिकियों का साथ दिया तथा 1781 में जनरल कॉर्नवालिस ने यॉर्कटाउन में सरेंडर किया और 1783 में पेरिस की संधि के साथ युद्ध की समाप्ति हुई। 1787 में संविधान बना तथा 1789 में लागू हुआ और अमेरिका का संविधान विश्व का पहला लिखित संविधान बना एवं जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने।
आजादी के बाद अमेरिका की विस्तारवादी नीति और गृहयुद्ध
1803 में अमेरिका ने लुइसियाना को फ्रांस से 15 मिलियन डॉलर में खरीद लिया, जिससे अमेरिका का क्षेत्रफल लगभग दोगुना हो गया। इसके बाद 1846–1848 में अमेरिका और मैक्सिको में युद्ध हुआ और मैक्सिको को हराने के बाद अमेरिका टैक्सास, कैलिफोर्निया और न्यू मेक्सिको जैसे क्षेत्र हासिल किया।
अमेरिकी गृहयुद्ध:
अमेरिका में यूरोप से आए लोग अफ्रीका से लाए गए दासों के साथ मिलकर बस गए थे। वहां दासप्रथा प्रचलित थी, जिसमें काले लोगों को दास बनाकर रखा जाता था। Black Lives Matter जैसा आंदोलन भी इसी सामाजिक भेदभाव की वजह से बड़ा बना। 1861 से 1865 के बीच अमेरिका में गृह युद्ध हुआ। उत्तरी अमेरिका दासप्रथा के खिलाफ था जबकि दक्षिणी अमेरिका इसके पक्ष में क्योंकि दक्षिण में कपास की खेती होती थी जिसमें दासों से काम करवाया जाता था। अंततः अमेरिका में दासप्रथा को खत्म किया गया।
अमेरिका के राष्ट्रपति थे अब्राहम लिंकन जो दासप्रथा के खिलाफ थे उन्हें इसी कारण गोली मार दी गई थी। आज भी अमेरिका में श्वेत और अश्वेत लोगों के बीच भेदभाव मौजूद है, हालांकि कानूनी रूप से सभी अधिकार दिए जा चुके हैं।
कैसे बना अमेरिका दुनिया का सुपर पावर ?
दुनिया में अमेरिका सबसे शक्तिशाली देश है इसके पीछे कई कारण हैं। अमेरिका की उसकी आर्थिक शक्ति और भौगोलिक स्थिति (जैसे कि समुद्रों से घिरा होना और मित्र राष्ट्रों से सीमाएँ होना) उसे सुरक्षित बनाती हैं।प्रथम विश्व युद्ध (1914 से 1918) में यूरोपीय देशों को भारी नुकसान हुआ और अमेरिका 1917 में शामिल होकर मित्र देशों को युद्ध जीतने में अहम भूमिका निभाई।दूसरे विश्व युद्ध में पर्ल हार्बर (1941) के बाद अमेरिका ने जापान पर हमला कर पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा दी। फिर सोवियत यूनियन के प्रभाव को रोकने के लिए 1949 में नाटो की स्थापना अमेरिका के नेतृत्व में हुआ। वर्ल्ड बैंक और IMF की स्थापना हुई जिससे अमेरिका की पकड़ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मजबूत हो गई।
एक गुमनाम उपनिवेश आजाद होकर ब्रिटेन के बाद अमेरिका के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बना। आज भी अमेरिका की सेना दुनिया के कई देशों में मौजूद है तथा वह कई देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहता है ताकि दुनिया में अपनी शक्ति बनाए रख सके। हालांकि चीन जैसे देश अमेरिका को चुनौती दे रहा है और ट्रेड वॉर जैसी स्थिति बनी ही रहती है।