“तकनीक, तरक्की और त्याग के प्रतीक भविष्यद्रष्टा नेता राजीव गाँधी”

“भारत एक प्राचीन देश है, लेकिन एक युवा राष्ट्र… और मैं भी युवा हूं, और मेरा भी एक सपना है।”- राजीव गाँधी

राजीव गांधी तकनीक, संचार और कंप्यूटर के क्षेत्र में आधुनिक भारत की नींव रखने वाले नेताओं में से एक माने जाते हैं।राजीव गांधी भारत के छठे प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 1984 में अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद संभाला। वे भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री थे ,जब वे प्रधानमंत्री बने उस समय उनकी उम्र मात्र 40 वर्ष थी। वे भारत में कंप्यूटर और टेलीकॉम क्रांति की शुरुआत, पंचायती राज को मजबूती, शिक्षा और विज्ञान को बढ़ावा, भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार तथा युवा शक्ति को प्रेरित किया।

राजनीति में रूचि नहीं थी लेकिन परिस्थितिवश प्रवेश

स्वर्गीय श्री राजीव गांधी कभी भी राजनीति को अपने करियर के रूप में अपनाना नहीं चाहते थे। वे एक पायलट थे, जब उनके भाई संजय गांधी की दुखद परिस्थितियों में मृत्यु हो गई इसके बाद उन्हें अपनी नौकरी छोड़ने और राजनीति में आने के लिए कहा गया, जो उनके खून में थी। साथ ही, उन्हें अपनी माता इंदिरा गाँधी के निरंतर साथ के रूप में गहन राजनीतिक प्रशिक्षण का लाभ भी मिला। वे उनके साथ में और अकेले भी लगभग हर देश की यात्रा की तथा उन्होंने देश का व्यापक दौरा किया और भारतीय जनता की पीड़ा को करीब से समझा। एआईसीसी के महासचिव के रूप में, उन्होंने बहुमूल्य प्रशासनिक अनुभव प्राप्त किया। सभी लोग इस शांत और सौम्य व्यक्ति से प्रभावित थे, जो साहसी और दृढ़निश्चयी भी थे और कार्य को पूरा करवाने की क्षमता रकते थे। उन्होंने यह दिखाया कि उनमें सामंजस्य और कौशल है जिससे वे सबसे कठिन परिस्थितियों में भी मानसिक संतुलन बनाए रख सकते हैं।

प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरुआती चुनौतियाँ का मजबूती से किया सामना

स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद फैली हिंसक भीड़ को उन्होंने सख्ती से कुचल दिया। उपद्रव करने वालों को यह स्पष्ट कर दिया गया कि नई सरकार कानून और व्यवस्था बनाए रखने में सक्षम है। यहाँ तक कि महत्वपूर्ण अधिकारियों को भी तुरंत बर्खास्त कर दिया गया। स्वर्गीय श्री राजीव गांधी के पास शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का असीम भंडार था। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि अपनी मां की हत्या के बाद उन्होंने लगातार चार दिन और रात तक न तो सोया और न ही आराम किया। जब सभी लोग सो रहे थे, तब वह दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रहे थे।

देशभर में जनविश्वास के साथ अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली

उन्होंने बेहद अच्छी शुरुआत की और अपने पाँच वर्षों के कार्यकाल में बहुत अच्छा कार्य किया। उन्होंने भारतीय समाज के सभी वर्गों का विश्वास जीता। उनके विदेश दौरे, जो विश्व के सभी प्रमुख देशों तक पहुंचे अत्यंत सफल रहे। जहाँ भी वे गए, वहाँ उन्होंने सकारात्मक प्रभाव छोड़ा। यहाँ तक कि अमेरिका में भी उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया और उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोरदार और लंबी तालियों के साथ सम्मानित किया गया।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान और राजनीति में सुधार

उनकी कई उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रही जैसे की उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ, चाहे वह उच्च स्तर पर ही क्यों न हो, लगातार लड़ाई लड़ी। एंटी-डिफेक्शन विधेयक पारित हुआ और एक अधिनियम बना जो भारत में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान है, जिसे राजनीतिक अस्थिरता को रोकने और दलबदल को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था।1980 के दशक में राजनीतिक दलों में बार-बार दलबदल के कारण सरकारें अस्थिर हो रही थीं। इसे रोकने के लिए 52वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 के तहत दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule) संविधान में जोड़ी गई। इसके फलस्वरूप भारत ने राजनीति के शुद्धीकरण की दिशा में एक लंबा रास्ता तय किया।

राजनीतिक समझौते और राष्ट्रीय एकता की दिशा में उनके प्रयास

पंजाब समझौता और असम समझौता उनकी राजनीतिक परिपक्वता और सूझबूझ का प्रमाण हैं। इस प्रकार उन दो जटिल समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त हुआ जो राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन चुकी थीं। आतंकवाद को सख्ती से कुचला गया और उनके कार्यकाल में आतंकवादी भागते रहे। श्री लालडेंगा के साथ भी समझौता हुआ और इस तरह मिज़ो समस्या का भी समाधान हुआ। त्रिपुरा में टीएनवी के साथ समझौता हुआ, जिसमें सभी भूमिगत लोगों को मुख्यधारा में लौटने के लिए कहा गया। गोरखालैंड की समस्या का भी जीएनएलएफ, पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के बीच समझौते से समाधान हुआ। इस प्रकार हमारे प्रिय, युवा स्वर्गीय प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता और विवेकशीलता के कारण पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति बहाल हुई, जो लंबे समय से अशांत था।

भारत-श्रीलंका समझौता और दक्षिण एशियाई शांति के लिए सराहनीय प्रयास

भारत-श्रीलंका समझौता उनकी एक और प्रमुख उपलब्धि थी। शुरुआत में इस समझौते की आलोचना की गई थी। लेकिन भारतीय शांति सेना ने सराहनीय कार्य किया और धीरे-धीरे एलटीटीई की संगठित आतंकवादी गतिविधियों को सख्ती से दबा दिया गया। जनता के समर्थन से वहाँ शांति बहाल हुई और सामान्य जीवन संभव हुआ। इस प्रकार यह द्वीप राष्ट्र अमेरिका, यहूदियों और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों का राजनीतिक अड्डा बनने से बच गया।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में इनकी तत्परता

जब ये सत्ता में आए तब देश कई प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त था। लगातार तीन वर्षों तक देश के बड़े हिस्सों में अभूतपूर्व सूखा पड़ा, ऐसे समय में युवा प्रधानमंत्री ने इस स्थिति का साहस और दृढ़ता से सामना किया। प्रशासन को युद्ध स्तर पर काम करने के लिए तैयार किया गया ताकि पीड़ित और भूखे लोगों को राहत दी जा सके। राजीव गांधी ने स्वयं देश का व्यापक दौरा किया, लोगों से मिले, उनकी शिकायतें सुनीं, मौके पर ही निर्णय लिए और आदेश जारी किए। इस प्रकार देरी और लालफीताशाही को न्यूनतम किया गया।

जब दिल्ली की झुग्गियों और ट्रांस-यमुना कॉलोनियों में हैजा फैला, तब उन्होंने साहस, दृढ़ता और दक्षता के साथ स्थिति को संभाला। परिणामस्वरूप महामारी को समय रहते नियंत्रित किया जा सका और काफी पीड़ा से बचा जा सका। इस मामले में उनके सूझबूझ और समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता की सराहना पुरे देश में हुआ।

बोफोर्स मामला से उबरकर रोजगार योजना और पंचायती राज का शुरू हुआ अध्याय

1988–89 के चुनावी वर्ष में संसद में बोफोर्स तोपों की खरीद को लेकर भारी बवाल मचा। बहुत आरोप-प्रत्यारोप और चरित्र- हनन हुई। फिर भी वे इस तूफान से सफलतापूर्वक उबर आए और पूरी तरह बेदाग साबित हुए। बल्कि, विपक्ष पर ही पलटवार हुआ। ग्रामीण गरीबों के लाभ के लिए जवाहर रोजगार योजना शुरू की गई तथा पंचायती राज को भारतीय संविधान में एक नए अध्याय को जोड़कर वास्तविक रूप दिया गया और शहरी नगरपालिकाओं एवं निगमों को संविधान के 65वें संशोधन के माध्यम से सशक्त किया गया।

विपक्ष के रूप में रचनात्मक राजनीति

प्रधानमंत्री के रूप में शानदार उपलब्धियों के साथ चुनाव में गए लेकिन चुनाव परिणामस्वरूप “झूलता हुआ संसद” आया, जिसमें कांग्रेस को केवल 194 सीटें मिलीं। राजीव गांधी ने विपक्ष के नेता की भूमिका निभाना पसंद किया और केंद्र में एन.एफ. सरकार बनी। विपक्ष के नेता के रूप में उनकी भूमिका रचनात्मक थी जिसमे उन्होंने सरकार की गलतियों और असफलताओं की हमेशा सही और तथ्य आधारित आलोचना किये । कई मामलों में सरकार को उनके दृष्टिकोण को स्वीकार करना पड़ा और उसी के अनुसार कार्य करना पड़ा।

मध्यावधि चुनाव के दौरान लोकप्रिय नेता की नृशंस हत्या

स्वर्गीय श्री राजीव गांधी ने 1991 के लोकसभा के मध्यावधि चुनावों के दौरान लोकप्रियता की चरम सीमा को छू लिया। जहाँ भी वे गए, विशाल जनसमूह उमड़ पड़ा। 21 मई 1991 को चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे (LTTE) के आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई। उनकी अचानक और अप्रत्याशित हत्या न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक त्रासदी थी।

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