भारत की कई ब्रांड्स ने दुनिया के अलग-अलग देशों में अपनी मजबूत पहचान बनाई है। अमेरिका में महिंद्रा के ट्रैक्टर्स की लोकप्रियता, साउथ कोरिया में टाटा के ट्रक्स की मजबूती, और साउथ ईस्ट एशिया में अशोक लीलैंड से लेकर हीरो तक की मौजूदगी, ये सब इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय कंपनियां अब केवल घरेलू बाजार तक सीमित नहीं हैं।
लेकिन इस वैश्विक विस्तार की कहानी में एक ऐसा अध्याय है, जो बाकी सब से अलग है। दो भारतीय टू-व्हीलर कंपनियों, Bajaj और TVS, का अफ्रीका महाद्वीप में दबदबा है। ये कंपनियां वहां केवल मौजूद नहीं हैं, बल्कि नंबर वन और नंबर टू की पोजीशन पर हैं और यह सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है।
चाइना का था दबदबा लेकिन भारतीय कंपनियों ने दी चुनौती
कुछ साल पहले तक अफ्रीका का टू-व्हीलर मार्केट लगभग पूरी तरह से चाइनीज़ कंपनियों के कब्ज़े में था। 200 से ज्यादा चाइनीज़ मैन्युफैक्चरर्स वहां मोटरसाइकिल बेचते थे और कम कीमत इन बाइक्स की सबसे बड़ी खासियत थी। ये बाइक्स सस्ती तो थी,लेकिन क्वालिटी कमजोर और कम ड्यूरेबिलिटी जैसी इनमें कई कमियां थीं। आफ्टर-सेल्स सर्विस और स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता लगभग न के बराबर थी। ये बाइक्स अक्सर पार्ट्स के डिब्बों में आती थीं और लोकल मैकेनिक्स उन्हें असेंबल करके बेचते थे। लेकिन जब कोई खराबी आती, तो न सही पार्ट मिलता था, न मरम्मत का भरोसेमंद तरीका था।
अफ्रीका के हालात को देखते हुए यह बड़ी समस्या थी, क्योंकि यहां पर कैपिटा इनकम कम है। यहां इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर है, सड़कें खराब हैं, अस्पताल, स्कूल और मार्केट घरों से दूर हैं। ऐसे में अफ्रीका के लोग एक सस्ती, मजबूत, और भरोसेमंद बाइक चाहते थे, जो खराब रास्तों पर भी लंबे समय तक चले।
जापान और यूरोप के विकल्प महंगे थे इसलिए ये आम लोगों के पहुंच से थी दूर
जापानी और यूरोपियन कंपनियां जैसे Honda और अन्य ब्रांड्स पहले से अफ्रीका में थीं। उनकी बाइक्स बेहतरीन क्वालिटी और ड्यूरेबिलिटी के लिए जानी जाती थीं, लेकिन कीमत इतनी ज्यादा थी कि आम ग्राहक की पहुंच से बाहर थीं। इस तरह, मार्केट में दो ही विकल्प थे कि या तो सस्ती लेकिन कमजोर क्वालिटी वाली चाइनीज़ बाइक्स या फिर महंगी लेकिन टिकाऊ जापानी/यूरोपियन बाइक्स खरीदें। अफ्रीका को एक ऐसा विकल्प चाहिए था, जो इन दोनों के बीच संतुलन बनाए।
साल 2004 Bajaj की एंट्री से अफ्रीकी लोगों को मिला संतुलित विकल्प
साल 2004 में Bajaj ने अफ्रीका के बाजार में अपनी मशहूर बाइक Bajaj Boxer लॉन्च किया । भारत में यह पहले ही अपनी मजबूती और परफॉर्मेंस के लिए लोकप्रिय थी। अफ्रीका में यह बाइक बिल्कुल वैसी ही निकली, जैसी वहां के लोग चाहते थे। सस्ती (लेकिन चाइनीज़ बाइक्स से थोड़ी महंगी),मजबूत और टिकाऊ जो आसानी से रिपेयर होने वाली और लंबे समय तक बिना ज्यादा खराब हुए चलने वाली थी। सिर्फ 3 साल के भीतर ही नाइजीरिया, युगांडा और केन्या जैसे देशों में Boxer सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइक बन गई।
Bajaj ने सिर्फ बाइक लॉन्च करके ही काम खत्म नहीं किया बल्कि एक स्मार्ट स्ट्रैटजी भी अपनाई। उन्होंने अफ्रीका में एक मजबूत आफ्टर-सेल्स नेटवर्क खड़ा किया और लोकल मैकेनिक्स को ट्रेन किया, ताकि कहीं भी, किसी भी गांव या कस्बे में उनकी बाइक्स रिपेयर हो सकें।
यहां एक दिलचस्प बात ये भी है कि अफ्रीका में कई जगह मोटरसाइकिलों को “Vodabe” कहा जाता है, क्योंकि वे केवल पर्सनल ट्रांसपोर्ट नहीं बल्कि कमर्शियल कामों के लिए भी इस्तेमाल होती हैं (जैसे लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना, सामान ढोना, बाजार में डिलीवरी करना इत्यादि)। ऐसे भारी-भरकम कामों के लिए एक ड्यूरेबल बाइक जरूरी थी, और Boxer ने खुद को इस रोल में पूरी तरह फिट साबित किया।
Bajaj की सफलता के बाद हुई TVS और Hero की एंट्री
Bajaj की सफलता के बाद TVS ने भी अफ्रीका में कदम रखा। उन्होंने Star, Apache Neo और JP जैसी बाइक्स उतारीं, जो किफायती होने के साथ-साथ अच्छी परफॉर्मेंस देती थीं। TVS ने भी आफ्टर-सेल्स नेटवर्क और लोकल मैकेनिक ट्रेनिंग पर जोर दिया। आज के समय में TVS अफ्रीका में करीब 10% मार्केट शेयर के साथ नंबर टू पोजीशन पर है।
साल 2014-15 के आसपास Hero MotoCorp ने भी अफ्रीका में एंट्री की और Dawn, Splendor, और XPulse जैसी बाइक्स उतारीं। हालांकि वे अभी Bajaj और TVS के मुकाबले मार्केट शेयर में पीछे हैं, लेकिन धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।
चाइनीज़ कंपनियों का पतन हुआ और अफ्रीकी बाजार से लगभग बाहर हुई
Bajaj और TVS की सबसे बड़ी जीत यह रही कि उन्होंने चाइनीज़ कंपनियों को लगभग पूरी तरह से अफ्रीका से बाहर कर दिया। बेहतर क्वालिटी, भरोसेमंद आफ्टर-सेल्स सर्विस, लोकल असेंबली प्लांट्स, सस्ती और टिकाऊ बाइक्स जैसे खासियत के चलते चाइनीज़ कंपनियां धीरे-धीरे मार्केट से गायब हो गईं।
स्थानीय उत्पादन और रोजगार को मिला बढ़ावा
आज Bajaj के अफ्रीका के नाइजीरिया, केन्या, युगांडा, तंजानिया आदि देशों में 10 असेंबली प्लांट्स हैं। TVS के भी केन्या और नाइजीरिया में हब्स हैं, जो पूरे ईस्ट और वेस्ट अफ्रीका को सप्लाई करते हैं। इन प्लांट्स ने न केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाई बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी दिया। यह भारतीय कंपनियों के लिए एक पॉजिटिव इमेज बिल्डिंग का बड़ा कारण बना।
आने वाले दिनों में कैसा है अफ़्रीकी टू–व्हीलर मार्केट का भविष्य
अफ्रीका का टू-व्हीलर मार्केट वर्तमान में करीब 3.65 बिलियन डॉलर का है और 2030 तक इसके 6.51 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है, यानी लगभग 10% सालाना ग्रोथ रेट के साथ बढ़ेगी।
आज Bajaj के पास 40% मार्केट शेयर और TVS के पास करीब 10% है। अगर ये रफ्तार जारी रही, तो आने वाले समय में भारतीय कंपनियां और भी ज्यादा मुनाफा कमाएंगी, जिससे भारत की GDP में भी सीधा योगदान होगा।
Bajaj Auto का रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट से आता है। TVS Motors का पिछले वित्तीय वर्ष में 60% एक्सपोर्ट सिर्फ अफ्रीकी मार्केट से आया। यह दिखाता है कि अफ्रीका भारत के ऑटो सेक्टर के लिए सिर्फ एक ‘अतिरिक्त मार्केट’ नहीं बल्कि एक स्ट्रैटेजिक हब बन चुका है। सिर्फ दो दशकों में Bajaj और TVS ने अफ्रीका जैसे बड़े और चुनौतीपूर्ण मार्केट में शीर्ष स्थान हासिल किया है। उन्होंने साबित किया कि भारतीय ब्रांड्स ग्लोबल क्वालिटी के प्रोडक्ट बना सकते हैं और सस्ती और टिकाऊ तकनीक दे सकते हैं। आफ्टर-सेल्स सर्विस और लोकल कनेक्शन से ग्राहक को सहूलियत भी पहुंचा सकते हैं।
अफ्रीका में यह सफलता भारतीय उद्योग की क्षमता और दूरदर्शिता का प्रमाण है। आज अमेरिका, साउथ कोरिया और साउथ ईस्ट एशिया में भी भारतीय कंपनियां मजबूती से खड़ी हैं। भविष्य में, अगर यही रणनीति जारी रही, तो भारत केवल अफ्रीका ही नहीं बल्कि दुनिया के और भी बड़े हिस्सों में टू-व्हीलर मार्केट पर राज कर सकता है !