समाज निर्माण एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसमें सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और वैचारिक घटक योगदान देते हैं। इस प्रक्रिया में “लिंग” (Gender) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। लिंग केवल जैविक भिन्नता नहीं, बल्कि एक सामाजिक संरचना है, जो यह निर्धारित करती है कि समाज में स्त्री और पुरुष की भूमिका कैसी होगी।समाज निर्माण में लिंग की भूमिका एक महत्वपूर्ण और बहुआयामी विषय है। लिंग (Gender) न केवल व्यक्ति की जैविक पहचान से जुड़ा होता है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचनाओं के भीतर उसकी भूमिका, अधिकार, अपेक्षाएं और अवसर भी तय करता है। आइए इस विषय को विभिन्न पहलुओं से समझें !
लिंग: एक सामाजिक संरचना
लिंग केवल जैविक भिन्नता (पुरुष और महिला) नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक निर्माण है, जिसके ज़रिए समाज यह तय करता है कि एक पुरुष या महिला से क्या अपेक्षा की जाती है।
उदाहरण: महिलाओं को संवेदनशील, कोमल और पालन-पोषण के योग्य समझा जाता है, जबकि पुरुषों को मजबूत, निर्णयकर्ता और कमाऊ माना जाता है।
लैंगिक भेद-भाव
अनेक शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों ने महिला तथा पुरुषों की उपस्थियों की तुलना को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है। उन्होंने अपने प्रतिवेदनों को दो भागों में विभाजित किया है — महिला और पुरुष । शोध के तथ्यों के अनुसार सामाजिक तथा शारीरिक आधार पर महिला और पुरुष में भिन्नता है।
परिवार और घरेलू क्षेत्र में भूमिका
परंपरागत समाजों में महिलाओं की भूमिका घरेलू कार्यों, बच्चों के पालन-पोषण और परिवार की देखभाल तक सीमित रही है।
पुरुषों को परिवार का मुखिया और आय अर्जित करने वाला माना गया।
हाल के वर्षों में महिलाओं की शिक्षा और जागरूकता बढ़ने से ये भूमिकाएं बदल रही हैं।
शिक्षा और कार्य क्षेत्र में लिंग की भूमिका
प्रायः समाज में लड़कियों की शिक्षा का विशेष महत्व नहीं दिया जाता है। उन्हें लड़के से निम्न समझकर उसे निश्चित घरेलू काम-धंधों में लगा दिया जाता है।
शिक्षण के समय कुछ अध्यापक भी लड़कियों पर अवांछित (Unwanted) टिप्पणियाँ करतें हैं, जो शिक्षण की नीति-नियमों के अनुकूल नहीं हैं।लेकिन अब शिक्षा क्षेत्र में लिंग समानता की दिशा में प्रगति हो रही है।
फिर भी, कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination), वेतन में असमानता और उच्च पदों पर महिलाओं की कम भागीदारी जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
राजनीति और नेतृत्व में भूमिका
महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी अब बढ़ रही है। पंचायत स्तर पर 33% आरक्षण इसका उदाहरण है।
लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी नेतृत्व पदों पर पुरुषों का वर्चस्व है।
मीडिया और संस्कृति में लिंग चित्रण
फिल्मों, टीवी, विज्ञापनों आदि में लिंग आधारित भूमिकाओं को प्रोत्साहित किया जाता है – जैसे कि महिला को घर संभालने वाली और पुरुष को बहादुर दिखाना।
यह लिंग रूढ़ियों (Gender Stereotypes) को बढ़ावा देता है।
जाति के विषय में लैंगिक मुद्दे
विभिन्न जातियों के समूह पर किये गये शोध से यह ज्ञात होता है कि उच्च बौद्धिक क्षमताओं, ध्यान-तर्क, अध्ययन, अनुभव-दृष्टि, निर्णय-कुशलता में भेद परिलक्षित होते हैं। विभिन्न जातियों के लोगों में कुछ विशेष लक्षण (Characteristic) पाये जाते हैं। सामान्यत: इनका प्रमुख प्रभाव की सामाजिक वातावरण अधिक है।
समाज सुधार और लिंग समानता की दिशा में प्रयास
समाज निर्माण में लिंग की भूमिका निर्णायक है। जब तक समाज में लिंग के आधार पर भेदभाव रहेगा, तब तक संतुलित और समावेशी समाज की कल्पना अधूरी रहेगी। लैंगिक समानता समाज की प्रगति, न्याय और विकास के लिए अनिवार्य है।
शिक्षा, जागरूकता अभियान, महिला सशक्तिकरण योजनाएं, लैंगिक समानता के कानून जैसे कि POSH Act, Domestic Violence Act आदि समाज में लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कार्यरत हैं।