“विकासशील भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था की संरचना और चुनौतियां !”

भारत की अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है जिसमें यहां पर पूंजीवादी और समाजवादी दोनों व्यवस्थाओं की विशेषताएँ देखने को मिलती हैं। यानी कि भारत में उत्पादन और उपभोग की जो गतिविधियां होती हैं, उनमें निजी क्षेत्र और सरकार दोनों का योगदान होता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी और सरकारी क्षेत्र की भूमिका

बहुत सारे ऐसे बिजनेस हैं जिन्हें पीपीपी मॉडल यानि प्राइवेट सेक्टर और सरकार दोनों मिलकर चला रहे हैं। इस तरह की व्यवस्था को ही मिक्स्ड इकोनॉमी कहा जाता है। कुछ सेक्टर्स जैसे डिफेंस और न्यूक्लियर एनर्जी को सिर्फ सरकार ही कंट्रोल करती है, जबकि बाकी क्षेत्रों में सरकार और प्राइवेट सेक्टर दोनों सक्रिय रहते हैं।
भारतीय नागरिकों को अधिकांश क्षेत्रों में अपने पेशा चुनने और व्यवसाय शुरू करने की स्वतंत्रता है, हालांकि डिफेंस, पावर, बैंकिंग जैसे कुछ क्षेत्र अत्यधिक विनियमित होते हैं।

क्या है मिश्रित अर्थव्यवस्था की खास बातें ?

मिश्रित अर्थव्यवस्था में अधिकांश श्रम संसाधन कृषि और उद्योग से जुड़े क्षेत्रों में काम करती है, जबकि सर्विस सेक्टर सबसे तेजी से बढ़ रहा है। वर्मेंतमान में इंडिया की इकोनॉमी दुनियाभर में सबसे तेज़ी से ग्रो कर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और भारत को “न्यूली इंडस्ट्रियलाइज़्ड कंट्री (NIC)” के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया है। इसका मतलब यह है कि भारत एक विकासशील देश है, लेकिन इसकी विकास दर दूसरे विकासशील देशों की तुलना में ज़्यादा है। NIC देशों में भारत के अलावा साउथ अफ्रीका, ब्राज़ील, मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड आदि शामिल हैं। पिछले दो दशकों में भारत की GDP हर साल औसतन 6–7% की दर से बढ़ी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत की इकोनॉमी 2026 तक 4 ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्र का योगदान

भारतीय अर्थव्यवस्था तीन प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित है–कृषि क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र और सेवा क्षेत्र !

• कृषि क्षेत्र का योगदान GDP में लगभग 14% है, जिसमें फसलें, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन और रेशम उद्योग शामिल हैं।
• औद्योगिक क्षेत्र का योगदान 27% है, जिसमें मैन्युफैक्चरिंग और अन्य उद्योग शामिल हैं।
• सेवा क्षेत्र का योगदान 59% है, जिसमें निर्माण, खुदरा, सॉफ्टवेयर, आईटी, संचार, हॉस्पिटैलिटी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और बीमा जैसे क्षेत्र आते हैं।

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, 2030 तक भारत का निर्यात 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। आज भारत नॉमिनल GDP के अनुसार दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी और क्रय शक्ति समानता (Purchasing Power Parity) के अनुसार तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं

• मिश्रित अर्थव्यवस्था
• विविध क्षेत्र
• कृषि आधारित
• सेवा क्षेत्र में तेजी से विकास
• सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र की सक्रियता
• तेजी से विकासशील अर्थव्यवस्था

क्या है भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियां ?

1.आधारभूत संरचनाओं का कम विकास:
सड़कों, रेल, बिजली, पानी, परिवहन, स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा संस्थानों, इंटरनेट कनेक्टिविटी और शहरी सुविधाओं का अभाव है। हालांकि लगातार सुधार हो रहा है, लेकिन अभी भी डेवलप्ड कंट्रीज़ के मुकाबले पीछे हैं।

2.प्रति व्यक्ति कम आय:
भारत में प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम है, जो यह दर्शाता है कि आर्थिक विकास का लाभ समान रूप से सभी लोगों तक नहीं पहुँच पा रहा है। इसका सीधा असर लाइफस्टाइल, शिक्षा, स्वास्थ और उपभोग पर पड़ता है।

3.उच्च जनसंख्या वृद्धि दर:
तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण रोज़गार की कमी, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं पर भार, आवास की समस्या, और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जैसी जैसी अनेक समस्याएँ पैदा होती है। इसके कारण गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी और पर्यावरण प्रदूषण की चुनौतियां भी उत्पन्न होती हैं।

4. गरीबी:
गरीबी अभी भी देश की बड़ी समस्या है, यहां की बड़ी आबादी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र, आवास) की पूर्ति करने में भी असमर्थ है।

5. आय की असमानता:
समाज के एक छोटे वर्ग के पास अत्यधिक संपत्ति है, जबकि देश की बड़ी आबादी बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रही है। यह असमानता केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक असमानता को भी जन्म देती है।आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में 1% लोग 53% संपत्ति के मालिक हैं, जबकि करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

6. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था:
GDP का 14% एग्रीकल्चर से आता है, आधी से ज़्यादा आबादी उस पर निर्भर है लेकिन कृषि आज भी अनेक चुनौतियां जैसे सिंचाई की कमी, मौसम पर निर्भरता, किसानों का कम आय, बाजार तक सीमित पहुंच जैसी समस्याओं से जूझ रही है।

7. कम उन्नत तकनीक:
देश के अधिकांश हिस्सों में आज भी पारंपरिक उपकरण, पुरानी मशीनें, और लेबर-इंटेंसिव वर्क पर निर्भरता अधिक है, जिससे उत्पादकता कम रहती है और लागत ज़्यादा आती है।

8. सामाजिक समस्याएं:
जातिवाद,धार्मिक संघर्ष , लैंगिक असमानता जैसी समस्याएं हैं।

9. बेरोजगारी:
GDP ग्रोथ को 8.5% तक ले जाने के लिए 2023-2030 के बीच 90 मिलियन नॉन-फार्म जॉब्स बनाने होंगे।

10. शिक्षा की खराब गुणवत्ता:
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अब भी बड़ी आबादी से कोसों दूर है। बुनियादी सुविधाओं की कमी, शिक्षण की कमजोर पद्धति, शिक्षा का अव्यवहारिक ढांचा छात्रों को तार्किक सोच, कौशल विकास और अन्वेषण के प्रति बढ़ावा नहीं देता है।

11. महंगाई:
भारत जैसे विकासशील देश में महंगाई गंभीर समस्या है। इससे निम्न ओर मध्यम वर्ग के लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है जिससे उनके जीवनस्तर प्रभावित होते है।

12. भ्रष्टाचार:
पद, सत्ता या अधिकार का दुरुपयोग करके निजी लाभ कमाना आर्थिक प्रगति, जनविश्वास और व्यवस्था की पारदर्शिता के लिए गंभीर रुकावट पैदा करती है।

13. निजी ऋण:
आर्थिक गतिविधियां को तेज करने के लिए वित्तीय संस्थानों या गैर सरकारी स्त्रोतों से निजी ऋण लेने के प्रवृति बड़ी है। सही आंकलन और विवेकपूर्ण कर्ज अर्थव्यवस्था के लिए सही भी है लेकिन लोग ऋण लेकर वापस नहीं कर पा रहे, जिससे सिस्टम प्रभावित हो रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार हेतु किए जा रहे प्रयास।

• सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, ई-नाम पोर्टल, और कृषि बीमा योजना किसानों की मदद के लिए सकारात्मक कदम हैं। जिससे किसानों को सीधी सहायता, उचित मूल्य और तकनीकी सहायता मिल सके। माइक्रो इरिगेशन, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, और कृषि यंत्रीकरण जैसे सुधार भी किए जा रहे हैं।कृषि न केवल खाद्य उत्पादन का आधार है, बल्कि इससे जुड़ी एग्रो-बेस्ड इंडस्ट्रीज़ जैसे खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी और वस्त्र उद्योग भी देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देती हैं
• औद्योगीकरण ने भारत को कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था से विकासशील औद्योगिक अर्थव्यवस्था की दिशा में अग्रसर किया है। इससे देश में बुनियादी ढाँचे जैसे सड़कें, बिजली, परिवहन और टेलीकम्युनिकेशन के विकास में भी तेजी आई है। भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ जैसे “मेक इन इंडिया”, उद्योग 4.0, और “स्टार्टअप इंडिया” औद्योगिक क्षेत्र को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बना रही हैं। सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स, और ऊर्जा आपूर्ति में सुधार कर रही है ताकि निवेशकों को बेहतर वातावरण मिले और रोज़गार के अवसर बढ़ें।
• सेवा क्षेत्र का तेजी से विकास भारत को नॉलेज-बेस्ड इकोनॉमी की ओर ले जा रहा है। सेवा क्षेत्र में सुधार के लिए डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और स्किल इंडिया जैसे पहल सरकार द्वारा शुरू किए गए हैं। इससे आईटी, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन जैसे क्षेत्रों को गति तो मिली ही है, इसके अलावा, ऑनलाइन सेवाओं, डिजिटल भुगतान, और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा मिला है।

भारत अगर कुछ बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं पर नियंत्रण कर ले तो जल्द ही एक विकसित अर्थव्यवस्था बन सकता है।
अब उत्पादकता बढ़ाना, रोज़गार सृजन करना, और भारत को आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की ओर ले जाना ही उद्देश्य होना चाहिए !

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