आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले मुंबई के फोर्ट एरिया में कुछ लोग एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ऐसे शिप्स पर पैसे लगाते थे जो कॉटन (कपास) दूसरे देशों में ले जाकर बेचते थे। अगर यह शिप्स प्रॉफिट लेकर आती तो जितने पैसे वे लोग लगाते थे, उस हिसाब से प्रॉफिट का कुछ हिस्सा उनको भी मिल जाता था। इसी पेड़ के नीचे शुरू हुआ ट्रेडिंग ग्राउंड जो आगे जाकर ना सिर्फ देश का बल्कि पूरे एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज बना।
इस एरिया से थोड़ी दूरी पर नजर आता है बीएसई यानी बंबई स्टॉक एक्सचेंज जो एक पेड़ से बदलकर बिल्डिंग में बदल चुका है। पहले सिर्फ कॉटन की ट्रेडिंग पर ध्यान दिया जाता था लेकिन आज दुनिया के हर एक प्रोडक्ट की यहां ट्रेडिंग की जाती है फिर चाहे वो तेल हो या गाड़ियां या फिर बिजली और टेक्नोलॉजी कंपनी। पहले दिन में चंद ट्रेड्स ही हुआ कर थे वो आज बढ कर 186 करोड़ से ज्यादा ट्रेड्स एक दिन में होते हैं,और एक दिन में 276.7 लाख करोड़ रुपए के ट्रांजेक्शन होते हैं।
कुछ लोग जो पेड़ के नीचे बैठकर छोटे-मोटे डील्स करते थे वो एक ऐसा इंस्टीट्यूट बनाने में सफल रहे जो देश की इकोनॉमी को डिफाइन करता है।

आइए जानते हैं भारत में शेयर बाजार की अवधारणा कहां से आयी ?
एम्स्टर्डम में एक कंपनी थी जिसका नाम था द डच ईस्ट इंडिया कंपनी। ये कंपनी भी इसी तरीके से शिप्स में इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का काम करती थी। इंडिया जैसे देशों में से मसाले, रत्न, ज्वेलरी और कपड़े इत्यादि यूरोप के देशों में ले जाती थी और वहां बेचकर मुनाफा कमाती थी। लेकिन चीजें लाना और ले जाना एक्सपेंसिव और रिस्की था इसलिए लोगों से पूंजी जुटाने के लिए शेयर निकाले।अलग–अलग इन्वेस्टर्स एक शिप के लिए फाइनेंस करते थे और प्रॉफिट निकला तो उनको हिस्सा मिल जाता था। मुंबई में इसी तरीके से ये ट्रेडिंग मॉडल अपनाया गया और धीरे–धीरे व्यापारियों ने एक साथ संगठित रूप से ट्रेडिंग करना शुरू किया।
ये वो जमाना था जब ज्यादातर शहर एक विशिष्ट उत्पाद पर फोकस किया करते थे। मुंबई में कॉटन, 1894 में अहमदाबाद में टेक्सटाइल के लिए, 1908 में कोलकाता में जूट के लिए ट्रेडिंग शुरू हुई और ऐसे ही अलग–अलग शहर जैसे अहमदाबाद, बड़ोदरा, बैंगलोर, भुवनेश्वर, मुंबई, कोलकाता, कोच्चि, कोयंबतूर, दिल्ली, गुवाहाटी, हैदराबाद, इंदौर, जयपुर, कानपुर, लुधियाना, चेन्नई, मैंगलोर, मेरठ, पटना, पुणे और राजकोट इन सारी जगहों पर अलग अलग प्रोडक्ट्स के लिए स्टॉक एक्सचेंजेस ऐसी ही छोटी-मोटी डील के साथ शुरू हुए।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सफर हुआ शुरू !
मुंबई में 1800 के अंतिम दौर में पांच ऐसे ब्रोकर्स थे जो उस जगह (बरगद के पेड़ के नीचे) से काम करते थे। धीरे धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी तो पास में मौजूद मेडस्ट्रीट में वे चले गए जो आज की महात्मा गांधी स्ट्रीट है। बाद में इनकी संख्या इतनी बढ़ने लगी कि कोई स्थाई स्थान ढूंढने की जरूरत लगने लगी और इसके लिए उन लोगों ने “द नैटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन” (The Native Share and Stock Brokers Association) की स्थापना किया।साल 1875 में मुंबई के हुड़ीमन सर्कल के पास में एक जमीन खरीदी जो बीएसई की पहली स्थाई गतिविधि वाली जगह थी। 1880 से 1900 तक कॉटन , जूट और रेलवे कंपनियों के शेयर का कारोबार धीरे–धीरे बढ़ने लगा और ब्रिटिश राज में बीएसई एक मान्यताप्राप्त संस्था बन गई।
बीएसई का वो स्थाई जगह जो आज भी भारत का वित्तीय केंद्र का प्रतीक है।
साल 1928 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) अस्थाई जगह से स्थाई भवन की ओर बढ़ा। यह भवन दलाल स्ट्रीट (Dalal Street) पर है जो आज भारत के वित्तीय केंद्र का प्रतीक बन गया है। 1928 में भवन बनने का काम शुरू हुआ और 1930 में बनकर तैयार हुआ, बाद में जिसका नाम 1960 में फिरोज जिजिभॉय टावर्स (Phiroze Jeejeebhoy Towers) कर दिया गया जो उस समय के अध्यक्ष फिरोजशाह मेहता के सम्मान में रखा गया।
यहीं पर ट्रेडिंग शुरू हुई धीरे-धीरे शेयर बाजार में हिस्सेदारी और निवेश बढ़ती गई, अलग-अलग कंपनी यहां पर इन्वॉल्व हुए और लिस्टिंग होकर चीजें फॉर्मलाइज्ड हुई। 1956 में बीएसई को भारत सरकार ने स्थाई रूप से मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज घोषित कर दिया।
बीएसई पहली बार अपना बेंचमार्क इंडेक्स शुरू किया।
साल 1986 में बीएसई ने एक नया मार्किट इंडेक्स निकाला जिसका नाम था सेंसेक्स (Sensex)। यानी कि पूरा का पूरा जो मार्किट चल रहा है उनके टॉप 30 कंपनी का प्रदर्शन मिलाकर ओवरऑल मार्केट ट्रेंड बताने के लिए एक फिगर निकाल ली गई। इन कंपनियों को मार्केट कैपिटलाइजेशन और लिक्विडिटी के आधार पर चुना गया था ,इससे निवेशकों को बाजार के ट्रेंड और प्रदर्शन समझने में आसानी हुई।
साल 2000 में बीएसई ने डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग, फ्यूचर कांट्रैक्ट्स जैसे चीजों की शुरुआत किया।
स्कैम 1992 से बीएसई की छवि को पहुंचा बड़ा नुकसान।
लेकिन साल 1992 में कुछ ऐसी चीजें हुई (शुरुआत 1990 से ही हो गई थी) जो कि बीएससी या बंबई स्टॉक एक्सचेंज के इमेज पर हावी होने लगा। यह वह समय था जब बाकी स्टॉक एक्सचेंजेस कमज़ोर पड़ चुके थे। महत्वपूर्ण स्टॉक एक्सचेंज जो था वह मुंबई में था और कुछ हद तक कोलकाता था। लेकिन इसमें होता यह था कि जिस तरीके से मुंबई का मार्केट परफॉर्म करता था वैसे ही बाकी मार्केट भी परफॉर्म करने लगते थे और इसी के बीच में हुआ 1992 का हर्षद मेहता स्कैम।
1990 में हर्षद मेहता ने कुछ कंपनियां जैसे एसीसी, स्टरलाइट, अपोलो टायर्स में जबरदस्त खरीद किया। शेयरों के दाम कृत्रिम रूप से बढ़कर कई गुना कर दिए गए जैसे एसीसी का शेयर 200 से 9000 रुपए तक पहुंच गया था। बीएसई का सेंसेक्स 1990 में 1000 से बढ़कर 1992 में 4500 के पार हो गया था। ये बुल रन बाजार की ताकत नहीं थी बल्कि हेराफेरी का नतीजा था। इसके लिए हर्षद मेहता ने बैंक के पैसों का गलत इस्तेमाल किया था। 1992 में जब स्कैम का पर्दाफाश हुआ तो निवेशकों का नुकसान हुआ और बीएसई की छवि को गहरा आघात पहुंचा।
अब जरूरत महसूस हुई ट्रांसपेरेंसी और रेगुलेशन की।
ऐसे में जरूरत महसूस होने लगी एक मॉडर्न स्टॉक एक्सचेंज की जो यूएस या यूरोपियन स्टॉक एक्सचेंज जैसा हो। जहां पर ट्रांसपेरेंसी हो और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाए। इन्वेस्टर्स के लिए सेफ होने के साथ कंपनी की रेगुलेशन भी ज़्यादा स्ट्रिक्ट हो और इसी के अंतर्गत एक वेस्टर्न लाइन पर बने स्टॉक एक्सचेंज बनाने की नई शुरुआत की गई ।
भारत सरकार द्वारा की गई एनएसई की स्थापना !
सरकार और सेबी ने 1992 स्कैम के बाद आधुनिक, पारदर्शी और तकनीक पर आधारित नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) को स्थापित किया।
ट्रेडिंग को कुछ ब्रोकर के नियंत्रण से हटाकर NSE ने ये सुनिश्चित किया कि क्वालिफाइड, एक्सपीरियंस और मिनिमम फाइनेंस रिक्वायरमेंट मिलने वाली ही कंपनी यहां पर ट्रेड होगी और इसका ओनरशिप मैनेजमेंट अलग–अलग रजिस्टर किया गया। इसके लिए जो पूरा का पूरा सुपरविजन सेबी के अंतर्गत था। सेबी को इस समय तक काफी ज्यादा पावर भी दे दिए गए क्योंकि यह पहले से सिर्फ एक नाम की बॉडी थी। पहले होता ये था कि स्टॉक प्राइस इंफोर्मेशन सिर्फ कुछ लोगों को एक रिमोट लोकेशन के जरिए मिल पाती थी लेकिन अब यह यूनिफार्म हो गई थी।
NSE के शानदार बदलाव से निवेशकों में फिर से जगा भरोसा।
एनएसई ने पेपर बेस्ड सेटलमेंट को रिप्लेस कर दिया गया था इलेक्ट्रॉनिक डिपॉजिटरी बेस्ड अकाउंट सेटेलमेंट के ऊपर जिस वजह से यह हमेशा टाइम पर होता था और ब्रोकर्स इसका गलत फायदा उठा नहीं पाते थे।
साथ-साथ रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम बना ताकि लोग जो ब्रोकर्स के साथ पैसा लगाते हैं, उनके पैसे और सेटलमेंट की गारंटी गवर्नमेंट के साथ बनी रहे और इसके वजह से स्टॉक एक्सचेंज पूरी तरीके से चेंज हुए। डोमेस्टिक इन्वेस्टर्स जैसे एलआईसी,स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईडीएफसी लिमिटेड इन कंपनीज का NSE के अंदर इनवेस्टमेंट करने से आम लोगों में विश्वास बना कि ये विश्वसनीय और पारदर्शी संस्था है। धीरे–धीरे एनएससी आज बीएसई से भी बड़ा स्टॉक एक्सचेंज बन गया है,इसके बाद में एनएसई ने नेशनल सिक्योरिटी डिपॉजिट लिमिटेड भी बनाया जहां पर आज आप कह सकते हो कि आपके डीमैट अकाउंट के ट्रांजेक्शन होते हैं। इस वजह से इन्वेस्टर्स सिक्योरिली शेयर्स और बॉन्ड इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसफर कर सकते हैं।
अब इस वजह से बीएसई की कंपटीशन कमजोर होने लगी तो फिर बीएसई भी लगभग वो सारी चीजें लागू कर दी जो एनएसई कर रहा था और बीएसई भी NSE की तरह ट्रांसपेरेंट बन गया।
बीएसई भी ग्लोबल स्टैंडर्ड एक्सचेंज बन गया !
साल 1995 के पहले बंबई स्टॉक एक्सचेंज के अंदर रिंग में या फिजिकली वहां पर जाकर ट्रेडिंग होती थी ,जहां ब्रोकर्स आपस में मिलकर शेयर एक्सचेंज करते थे। लेकिन साल 1995 में पूरी तरीके से बॉम्बे स्टॉक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम (BOLT – BSE Online Trading System) पर स्विच कर गई जिसे सीएमसी लिमिटेड (Computer Maintenance Corporation Limited) कंपनी ने बनाया था। और सबसे अनोखी बात यह थी कि सिर्फ 50 दिनों में यह पूरा का पूरा बदलाव किया गया जो अपने आप बहुत बड़ी बात थी। ये ट्रेडिंग सिस्टम आने के बाद बीएसई खुद को ग्लोबल स्टैंडर्ड एक्सचेंज के रूप में स्थापित कर लिया।
ये कहानी है इंडिया के स्टॉक मार्केट की जो एक पेड़ के नीचे से शुरू होकर दुनिया के एक बड़े स्टॉक मार्केट बनने तक की !