“राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कहानी जितना प्रेरक है उतना ही पेचीदा !”

बिहार की छोटी सी जगह बख्तियारपुर से आने वाले नीतीश कुमार को गांव में प्यार से मुन्ना बुलाया जाता था। नीतीश शब्द का मतलब है – सही राह पर चलने वाला। राजनीतिक जीवन की शुरुआत में नीतीश कुमार में उनका काम नाम को चरितार्थ करने वाला रहा। किसी को नहीं पता था कि गांव का यह मुन्ना एक नहीं, दो नहीं बल्कि नौ बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा। दो मजबूत दलों के बीच, राजनीतिक रुझान अपने खिलाफ होने के बाद भी नीतीश कुमार शाह–मात के इस खेल में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर 2005 के बाद लगातार काबिज हैं।
नीतीश कुमार का राजनीतिक कद, उनकी तजुर्बा, जनता से रूबरू होने का उनका तरीका काफी कुछ बदलता गया लेकिन जो नहीं बदला, वो है उनका व्यक्तित्व। राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है, और न ही दुश्मन इस बात का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जीता-जागता उदाहरण हैं।

गांधीवादी पिता की विरासत और नीतीश कुमार का निजी जीवन।

नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में हुआ था। उनके पिता राम लखन सिंह एक आयुर्वेदिक चिकित्सक थे और उनकी मां परमेश्वरी देवी गृहणी थीं। नीतीश कुमार के पिता गांधीवादी विचारधारा वाले और स्वतंत्रता सेनानी थे। मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे नीतीश अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता के आदर्श का पालन करते हुए बड़े हुए। नीतीश कुमार की शादी 1973 में मंजू सिन्हा से हुई जो पेशे से स्कूल टीचर थीं। इनके एकमात्र पुत्र निशांत कुमार हैं जो लगातार राजनीति से दूरी बनाए रखते हैं लेकिन आजकल उनके राजनीति में आने की अटकलें तेज है।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई और छात्र आंदोलन के साथ राजनीति का सफ़र हुआ शुरू।

नीतीश कुमार 1972 में बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब एनआईटी) पटना से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग किए। पटना यूनिवर्सिटी के दिनों में जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में हुए “छात्र आंदोलन” में नीतीश कुमार का नाम पहली बार उभरा था। कॉलेज के बाद उन्होंने बिहार बिजली विभाग में आधे-अधूरे मन से नौकरी करना शुरू किए लेकिन तब तक नीतीश कुमार छात्र राजनीति में बड़ा चेहरा बन चुके थे लेकिन जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़कर पूरी तरह राजनीति में आ गए।
समाजवादी धारा के नीतीश कुमार 1977 में एंटी-कांग्रेस आंदोलन के दौरान पहली बार जनता पार्टी के टिकट से हरनौत से चुनाव लड़े, लेकिन वह जीत नहीं पाए थे। 1985 में नीतीश कुमार ने एक और बार इलेक्शन लड़ा और पहली बार विधायक बने। 1987 में उन्होंने युवा लोक दल के अध्यक्ष का पद संभाला। 1989 में नीतीश कुमार पहली बार बाढ़ से सांसद बने तथा 1991 में दोबारा सांसद चुने गए। इसके बाद 1996 और 1998 में भी सांसद बने।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 1998 में नीतीश कुमार को केंद्रीय रेल मंत्री बनाया गया। 1999 में नीतीश कुमार पांचवीं बार सांसद चुने गए थे और इस बार उन्हें केंद्र सरकार में कृषि मंत्री बनाया गया। साल 2004 में वो छठी और आखिरी बार सांसद बने थे और फिर मुख्यमंत्री बनने का सिलसिला शुरू हुआ। गठबंधन चाहे जो भी हो लेकिन नीतीश कुमार 2005 से अबतक नीतीश कुमार लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं।

रेलमंत्री के रूप में नीतीश की लोकप्रियता देश भर में फैली।

नीतीश कुमार ने भले ही कई चुनाव लड़े और जीते हों, लेकिन उनकी लोकप्रियता पूरे भारत में सबसे ज्यादा तब हुई, जब वो वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री बने थे। रेल मंत्री के रूप में उन्होंने कई अच्छे काम किए और एक दिन ऐसा आया जब किशनगंज के पास हुए भीषण रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए पद से इस्तीफा दे दिया।

निजी जीवन में हुई परेशानी को समय आते ही ठीक किए ताकि आम लोगों को भी उन चीजों का सामना न करना पड़े ऐसी ही एक कहानी है।

तमाम राजनीतिक दांव पेंच के साथ नीतीश कुमार का एक बेहद सॉफ्ट साइड भी है। नीतीश के बचपन में उनके साथ कई ऐसी चीजें हुई थीं जिससे वो आहत हुए। ऐसा फिर कभी किसी के साथ ना हो इसलिए वो मौका मिलते ही सुधार देते है ,उनकी यही खासियत है।
नीतीश कुमार के दोस्त बताते हैं कि स्कूल के दिनों में नीतीश और उनके दोस्तों को स्कूल से घर जाने के लिए एक शॉर्टकट मिला जो एक रेलवे ट्रैक से होकर गुजरता था। एक बार नीतीश और उनके दोस्त रेलवे ट्रैक पर खड़ी मालगाड़ी के नीचे से होकर जा रहे थे। सारे दोस्त निकल गए, लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार मालगाड़ी के नीचे आए, मालगाड़ी चलने लगी और नीतीश कुमार बाल-बाल बचे थे। वर्षों बीत गए लेकिन नीतीश वो किस्सा नहीं भूले और जब 1998 में नीतीश कुमार रेल मंत्री बने, तो उन्होंने सबसे पहले बख्तियारपुर के उस रेलवे स्टेशन पर एक फुट ओवर ब्रिज बनवा दिया।

पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो बहुमत नहीं होने के कारण देना पड़ा था त्यागपत्र।

• पहली बार नीतीश कुमार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन बहुमत न होने के कारण उन्हें 7 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 2003 में नीतीश कुमार और शरद यादव ने जेडीयू यानी जनता दल यूनाइटेड बनाई।
• 2005 के चुनाव में नीतीश कुमार पहली बार बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने जो मुख्यमंत्री के तौर पर यह उनकी दूसरी बार शपथ थी।
• 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को 206 सीटों पर शानदार जीत मिली थी जिसमें से जेडीयू को अकेले 115 सीटें मिली थीं।
• इसके बाद जब बीजेपी ने 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो नाराज होकर नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर लिया।
• 2014 लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया, लेकिन बाद में जीतन राम मांझी के साथ विवाद के कारण 2015 में फिर से मुख्यमंत्री बने। 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद, कांग्रेस और जेडीयू गठबंधन को बड़ी जीत मिली और नीतीश कुमार ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
• कुछ ही महीनों बाद लालू परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद नीतीश कुमार फिर से एनडीए के साथ आ गए और बीजेपी के समर्थन से छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
• 2020 के चुनाव में जेडीयू को कम सीटें मिलीं लेकिन एनडीए गठबंधन को बहुमत मिला और नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री बने। बाद में उन्होंने बीजेपी पर जेडीयू को तोड़ने का आरोप लगाते हुए एनडीए से नाता तोड़ लिया और फिर से राजद, कांग्रेस और वाम दलों के सहयोग से आठवीं बार मुख्यमंत्री बने।

जेपी आंदोलन से निकले दो चेहरे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दोस्ती–दुश्मनी वाली राजनीति का सफ़र।

ये दोस्ती और दुश्मनी की कहानी बिहार की राजनीति का सबसे दिलचस्प चेहरा बन गई है। 1990 में लालू सीएम बने और कुछ दिन बाद नीतीश अपनी राह अलग कर लिए। 2015 में दोनों फिर एक हुए लेकिन 2017 में गठबंधन टूटा और 2022 में फिर साथ आए ,उसके बाद लालू ने नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल भी बताया। नरेन्द्र मोदी की सत्ता के खिलाफ नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने की कवायद किए लेकिन अंततः 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले फिर से एनडीए का हिस्सा बन गए और नौवीं बार मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए तथा लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया। कहा ये भी जाता है अगर कांग्रेस गठबंधन नीतीश कुमार को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर देती तो रिजल्ट कुछ और होता।

सुशासन बाबू नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनकर बिहार में कई शानदार काम किए।

• नीतीश कुमार के सबसे सराहनीय कामों में से एक थी साइकिल योजना, जिसे 2006 में लड़कियों के स्कूल जाने की संख्या बढ़ाने के लिए शुरू किया गया। इसका असर भी दिखा और लड़कियों का नामांकन 33% से बढ़कर 97% तक पहुंच गया।
• 2007 में महादलित विकास मिशन और जीविका परियोजना जैसी योजनाएं लाईं गईं, जिनसे लाखों महिलाओं को स्वरोजगार मिला।
• 2015 में नीतीश ने शुरू किया “सात निश्चय कार्यक्रम” जिसमें हर घर बिजली, नल का जल, शौचालय, नाली-गली पक्कीकरण जैसे कार्य हुए।
• उन्होंने पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया, बिहार ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बना था। इस कदम को बेहद क्रांतिकारी माना गया क्योंकि ये फैसला महिलाओं की राजनीति में एंट्री आसान कर दी थी।
• इसी तरह महिलाओं की मांग पर नीतीश कुमार ने पूरे बिहार में शराबबंदी की घोषणा कर दिए। महिलाओं ने भी नीतीश कुमार को इस काम के लिए भारी मतदान करके सही साबित भी कर दिया।

नीतीश कुमार के कार्यकाल में कई विवाद भी सामने आए।

• उनपर राष्ट्रगान के अपमान का आरोप लगा।
• मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड में 243 बच्चों की मौत की नैतिक ज़िम्मेदारी का सवाल उठा।
• शराबबंदी के बाद भी ज़हरीली शराब से हुई मौतों पर उनकी नीति पर उंगलियां उठीं।
• विपक्ष सृजन घोटाले में भी सही से जांच नहीं कराने का आरोप लगाती है।

विकास और विवाद के बीच नीतीश कुमार का सफ़र अब भी जारी है।

राज्य में साक्षरता बढ़ी, सड़कें बनीं, और महिलाएं सशक्त हुईं लेकिन आज भी राज्य बेरोजगारी, शिक्षा की गुणवत्ता और भारी पलायन जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। कभी वह बिहार के लिए आशा की किरण बने तो कभी गठबंधन की राजनीति के खिलाड़ी जिसके कारण उनकी आलोचना भी हुई। लेकिन राजनीति को समझने वाले इसे ज्यादा अहमियत नहीं देते। चाहे इंफ्रास्ट्रक्चर हो या समाज सुधार के लिए उनके प्रयास ,वो सब उल्लेखनीय रहा है। बिहार के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है !

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