“पानी पर बसा अनोखा शहर वेनिस जिसे हजार साल पुरानी लकड़ियां थामे है”!

वेनिस शहर इतिहास,कला और आश्चर्य का एक ऐसा मिश्रण है जिसे देखकर हर कोई मंत्र मुग्ध हो जाता है। वेनिस पूरी दुनिया का एकमात्र ऐसा शहर है जो पूरा का पूरा पानी में बसा है। यहां कोई रास्ते नहीं है बस नहरें हैं, नहर के बाहर जाते ही आपको टैक्सी नहीं लेनी होती बल्कि आपको होटल या कहीं पर भी जाने के लिए नाव लेनी होती है इसीलिए इस पूरे शहर में एक भी व्हीकल नहीं है। सड़क के जगह नहर वाले इस शहर के हर मोड़ पर आपको इतिहास की कहानियां मिल जाएगी। यहां के लोग आमतौर पर नाव खरीदते हैं क्योंकि शहर में एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए सब नाव का ही उपयोग करते हैं। यहां पर इस्तेमाल होने वाली जो सबसे प्रचलित नाव है उन्हें गोंडोला कहा जाता है। गोंडोला बनाना भी एक कला है इसके लिए लकड़ी के 280 टुकड़े लगते हैं और इसे बनाने में लगभग दो महीने का वक्त लगता है।

क्या है वेनिस शहर का इतिहास ?

वेनिस की शुरुआत पांचवीं और छवी शताब्दी के आसपास हुई थी। यह वो दौर था जब रोमन
साम्राज्य का पतन हो गया था और उस समय नेतृत्वविहीनता के कारण वहां पर बार-बार बाहरी लोग हमला करते थे और इस हमले से बचने के लिए वहां के लोग किसी सुरक्षित जगह की तलाश में रहते थे। उस समय इटली के उत्तर पूर्व में वेनेटो क्षेत्र के समुद्री इलाकों में कई सारे दलदल द्वीप थे। दलदल से भरे द्वीप पर कोई भी रहना नहीं चाहता था, क्योंकि यह जमीन पानी से भरी हुई थी इसलिए यहां पर खेतीबाड़ी करना तो असंभव था लेकिन बसेरा बसाकर रहना भी आसान नहीं था किंतु जब बर्बेरिस यानी कि विदेशी हमलावरों ने पूरे इटली पर हमले करने शुरू कर दिए तो लोग इस दलदली विस्तार की तरफ भी भागने लगे। शुरुआत में यह एक आक्रमणकारियों से बचने के लिए अस्थाई ठिकाना था लेकिन उन लोगों को पता भी नहीं था कि उनका यह अस्थाई ठिकाना दुनिया के सबसे खूबसूरत और मशहूर शहरों में से एक बनने वाला है।

कैसे बसा पानी पर यह अद्भुत शहर ?

वेनिस शहर की सबसे अद्भुत बात यही है कि एक तो यह पानी पर बसा हुआ है ही लेकिन इसके साथ यह छोटे-छोटे 118 द्वीपों से मिलकर बना है और हर द्वीप पर कॉलोनी। इन सभी 118 द्वीपों को यानी कि इस पूरे शहर को करीब 115 नहरों ने जोड़े रखा है और इन द्वीपों को जोड़ने के लिए आज 400 से भी ज्यादा पुलों का सहारा लिया गया है। लेकिन वास्तव में यह सब करना और उस दलदली जमीन पर एक आशियाना बना पाना भी आसान नहीं था जबकि यहां पर तो एक पूरा का पूरा शहर खड़ा है।

आइए जानते हैं दलदली मिट्टी पर जीवन कैसे संभव हुआ ?

बर्बेरिस ने पूरे इटली पर जब हमला कर दिया तो इटली के कुछ लोग अपने आप को बचाने के लिए उसके नॉर्थईस्ट साइड चले गए और अंत में जाते जाते व समुद्र किनारे पहुंच गए। लेकिन इटली के इस समुद्र के भीतर भी नरम रेत वाले छोटे-बड़े आइलैंड्स मौजूद थे और उस वक्त हालात इतने गंभीर थे कि इन लोगों के लिए इटली को छोड़कर समुद्र के भीतर जाकर उन आइलैंड्स पर बसना ही उनकी मजबूरी बन गया और इसलिए वे लोग बोट के द्वारा समुद्र के थोड़े भीतर चले गए। ये लोग जब उस दलदली मिट्टी वाले आइलैंड्स पर पहुंचे तो वहां पर उन्होंने सोचा कि अभी के लिए अस्थाई तौर पर यहीं बस जाएंगे। जब वे लोग वहां पर उतरे तो उनमें से एक रिफ्यूजी उस दलदली जमीन के भीतर धंसता चला गया लेकिन उसने किसी तरह अपने आप को बचाने के लिए नाव का चप्पू सीधा जमीन के नीचे गाड़ दिया और एक लेवल के बाद वो रुक गया।
यहीं से उनको विचार आया कि इस दलदली जमीन को बड़ी-बड़ी लकड़ियों के माध्यम से ठोस बना देना है। इसके बाद उन्होंने आसपास से कई सारी लकड़ियों का इंतजाम किया और उनके पास जो भी लकड़ी थी उन्हें स्थिर करके वह वहां पर रुक गए और बाद में बहुत सारे और लोग भी वहां पर आने लगे। बाद में वहां से कुछ दूर क्रोएशिया के जंगलों से खासकर Slavonia और Istria क्षेत्रों से यहाँ से मजबूत और टिकाऊ ओक (Oak) और लार्च (Larch) की लकड़ी लाई गई।उत्तरपूर्वी इटली के वनों जैसे Cadore, Trentino और Veneto क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों से फर (Fir) और स्प्रूस (Spruce) जैसी लकड़ी मिली। आल्प्स पर्वत के आसपास के जंगल से भी अच्छी गुणवत्ता वाली लकड़ी मिली। लकड़ी को गहरे कीचड़ और पानी में गाड़कर वेनिस के घरों की मजबूत नींव (foundation) बनाई गई।

जब इन बड़ी मोटी और लंबी लकड़ी को जब इन आइलैंड्स की दलदली मिट्टी के ऊपर ठोका जाता था तो करीब 5 से 6 मीटर अंदर जाने के बाद वहां पर ठोस जमीन ठोस मिट्टी आ जाती थी जिसमें यह लकड़ी फंस जाती थी और सख्त बन जाती थी तथा ग्रिप बना लेती थी जिसे हिलाया भी नहीं जा सकता था।
मतलब कि यह दलदली जमीन कुछ हद तक ही थी उसके बाद तो पांच से 6 मीटर नीचे सख्त जमीन थी। इन लकड़ियों को एक दूसरे से बहुत ही करीब साथ-साथ अंदर ठोका जाता जिससे एक बड़ा और सख्त प्लेटफॉर्म बन जाता, इस प्लेटफार्म को समतल करके उसके ऊपर बड़ी लकड़ियों को बिछा दिया जाता था ताकि लकड़ियों की नींव पूरा लोड एक साथ सह सके।
इस फाउंडेशन को पानी के सतह से ऊपर उठाने के लिए स्पेशल लाइम स्टोन के उनके ऊपर ब्लॉक्स रखे गए। लाइम स्टोंस और मोटी लकड़ियों के मेल ने एक बहुत मजबूत बुनियाद बना ली, ऊपर से पानी के नीचे जो लकड़ियां थी वो पानी के कारण फूलकर एकदम टाइट होकर एक दूसरे से जुड़ गई और अब तो उनके बीच से हवा भी नहीं गुजर सकती थी।

क्या ये लकड़ियां खराब नहीं होती होगी ?

लकड़ियां हवा के संपर्क में खराब हो सकती है और वो भी बहुत ही लंबे समय के बाद लेकिन लकड़ी जब पानी के भीतर हो तो वह कभी खराब नहीं होती। ऊपर से यहां पर लकड़ियों की सबसे अच्छी क्वालिटी पसंद की गई थी जिस कारण आज 1000 साल बाद भी इन लकड़ियों को जब निकाला जाता है तो वह वैसी की वैसी है और उनके ही ऊपर आज पूरे वेनिस शहर टिका हुआ है।
माना जाता है कि लकड़ियों की जिन खंभों पर पूरा वेनिस शहर टिका है वह टोटल डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा है। लकड़ियों के और लाइमस्टोन की नींव के ऊपर बिल्डिंग्स बनाए गए। शुरुआत में वहां के लोगों ने लकड़ी के घर बनाए बाद में उनमें ईट और प्लास्टर ऑफ पेरिस भी ऐड किया गया। लेकिन वजन बढ़ ना जाए इसलिए वहां पर आमतौर पर कोई भी बिल्डिंग तीन मंजिलों से ज्यादा बड़ी नहीं बनाई जाती थी।
धीरे-धीरे सभी आइलैंड्स घरों से भरते गए और जितने आइलैंड्स थे उन सभी पर वेनिसन शैली में घर और इमारतें बनते गए। शुरुआती 500 सालों तक तो यह सभी आइलैंड्स एक दूसरे से अलग-अलग ही थे जो पानी की नहरों से जुड़े हुए थे लेकिन बाद में जब ट्रेड बढता गया लोग वहां पर आने लगे तो सभी आइलैंड्स को लकड़ी के पुलों से जोड़ दिया गया। इसके बाद जैसे-जैसे जमाना आगे बढ़ा पत्थर और स्टोंस के भी ब्रिज बनाए गए आज इस शहर में करीब 400 से ज्यादा ब्रिज है जो इसके 118 आइलैंड्स को जोड़ते हैं।

वेनिस में पानी की किल्लत और निदान कैसे हुआ ?

वेनिस का जैसे-जैसे विकास होता रहा इस शहर में आसपास से लोग आकर बसने लगे और जब यहां पर आबादी 1 लाख से ज्यादा हो गई तो इसके वाटर रिसोर्स कम पड़ने लगे और पीने के पानी की दिक्कत हो गई। वैसे तो वेनिस शहर पानी के बीच ही बसा है लेकिन वो पानी समुद्र का खारा जल है और वेनिस में इतनी बड़ी आबादी को पीने लायक पानी मिल सके ऐसा कोई वाटर रिजर्व नहीं था। यहां पर कोई नदियां थी नहीं इसलिए पीने लायक पानी इटली से शुरुआत में ड्रम भर भर के लाया जाता था लेकिन यह धीरे-धीरे बहुत ही महंगा साबित होने लगा। जब यहां की पॉपुलेशन 160000 से ज्यादा हो गई तो इस शहर में पानी की एक बहुत बड़ी दिक्कत हो गई। वेनिस के आसपास कुछ आइलैंड ऐसे थे जहां पर अभी तक भी कंस्ट्रक्शन नहीं हो पाई थी, वहां बारिश के पानी को जमा करने के लिए बहुत ही गहरे गड्ढे खोदे गए और उसकी दीवार को पत्थरों और चिकनी मिट्टी से वाटरप्रूफ बनाया गया। इन गड्ढों में सीधे बारिश का पानी जमा नहीं किया जाता था, वेनेसियन इंजीनियरों ने इससे भी आगे सोचा था उन लोगों ने वेनिस के अलग-अलग आइलैंड से अलग-अलग घरों से जो भी बारिश का पानी आता था उस पानी को पाइपलाइन के माध्यम से यहां पर जोड़ दिया और यह गड्ढों में पानी रेत और पत्थरों के बीच से होकर गुजरता था जिस वजह से जब पानी को रीयूज किया जाए तो वह फिल्टर्ड हुआ मिले। इस तरह वेनिस के लोगों को फिल्टर्ड किया हुआ पानी मिलने लगा।

वेनिस को फ़्लोटिंग सिटी ऑफ द गोल्ड कहा जाने लगा

शहर को बसाने के बाद वहां पर लोगो के आशियाने बन गए लेकिन धीरे-धीरे यह शहर बीच में होने के कारण आर्थिक प्रगति भी करने लगा। नौवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी के बीच वेनिस शहर ने एक व्यापारी केंद्र के रूप में जबरदस्त उन्नति पाई और इसके लिए जिम्मेदार था वेनिस का लोकेशन। वेनिस यूरोप और एशिया के बीच में था जिस वजह से यह उस समय दोनों कॉन्टिनेंट को जोड़ने वाला समुद्री यात्रा का सबसे बड़ा केंद्र बन गया। यहां से मसाले,रेशम, कीमती पत्थर, आभूषण, टेक्सटाइल, सोना, चांदी और कई सारे खाने पीने की चीजों का भी व्यापार होता था। वेनिस के बंदरगाहों परदुनिया भर के व्यापारी और जहाज आते थे जिस कारण यह शहर उस समय इतना धनवान बन गया कि उसे उस समय फ्लोटिंग सिटी ऑफ द गोल्ड कहा जाने लगा।

सेंट मार्क स्क्वेयर है वेनिस शहर का दिल

वेनिस का सेंट मार्क स्क्वेयर शहर का सबसे मशहूर और खूबसूरत हिस्सा है यह स्क्वेयर कभी वेनिस गणराज्य का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र हुआ करता था। यह स्क्वेयर अपनी सौ की परत वाले गुंबज और शानदार मोजाइक के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर जो यह चर्च है वह 11वीं शताब्दी में बनायागया था जो आज भी वहां पर बना हुआ है। ये वेनिस शहर की पहचान है ,सेंट मार्क स्क्वेयर की आज के दिन सबसे चौकाने वाली बात यह है कि यह स्क्वेयर धीरे-धीरे पानी में डूब रहा है। वेनिस का सबसे बड़ा दुश्मन ग्लोबल वार्मिंग है।आज हम ग्लोबल वार्मिंग के युग से गुजर रहे हैं और आज दक्षिणी और उतरी पोल में बर्फ पिघल रही है जो समुद्र के जल स्तर को बढ़ा रही है। कई सारे द्वीप है दुनिया में जो गायब हो चुके हैं। मालदीव जैसे कई सारे देश भी भविष्य में गायब हो जाएंगे तो आश्यर्च की बात नहीं ।

क्या वेनिस जैसा अद्वितीय शहर भी डूब जाएगा ?

अनफॉर्चूनेटली सच बात तो यही है कि हां यही होगा धीरे-धीरे वेनिस शहर भी गायब हो जाएगा और समुद्र में डूब जाएगा। विज्ञान कहता है कि अगर हालात नहीं बदले तो अगले 80 सालों में वेनिस पूरी तरह डूब जाएगा।

क्या वेनिस बच सकता है और क्या कोशिशें की जा रही है ?

आज वेनिश को बचाने के कई सारे प्रयत्न शुरू हुए हैं उसमें से सबसे बड़ा जो है वह है एमओ एसई प्रोजेक्ट जिसमें बड़े-बड़े बैरियर लगाए जा रहे हैं जिससे समुद्र के बदलते जल स्तर को रोका जा सके। लेकिन यह समस्या का अस्थाई हल हो सकता है लेकिन स्थाई हल नहीं है। एक ना एक दिन ग्लोबल वार्मिंग ऐसे ही बढ़ती रही तो वेनिस का डूबना तय ही मान लें।

वेनिस का मशहूर अनोखा फेस्टिवल कार्निवेल

वेनिस कार्निवल पूरी दुनिया में मशहूर है, यह त्यौहार हर साल के फरवरी महीने में मनाया जाता है और इस दौरान लोग वहां पर अद्भुत मास्क पहनकर और परंपरागत पोशाक पहनकर परेड पर निकलते हैं।

आइए जानते हैं कि इन मास्क के पीछे की एक अजीब कहानी

18वीं शताब्दी में वेनिस के लोग इस मास्क को इसलिए पहनते थे ताकि उनकी पहचान छिपी रहे। उस समय अमीर और गरीब के बीच की बहुत बड़ी दूरी हो गई थी ,वो इन मास्क के सहारे अमीर और गरीब के बीच की दूरी को मिटा देते थे।

वेनिस शहर का नाम वेनिस कैसे पड़ा ?

कई लोग ऐसा मानते हैं कि वेनिस का मतलब होता है डिसअपीयर्ड। वेनिश शहर भी समुद्र में विलीन हो जाने वाला है इसी से इसका नाम वेनिस पड़ा। लेकिन यह एक मिथ है रियलिटी नहीं है। वेनिस का नाम दरअसल इटालियन वैनिटी पीपल से आया है वो वैनिटी लोग जो रोमन साम्राज्य के पतन के बाद अपनी सेफ्टी के लिए वेनिस की दलदली जमीन पर पहुंच गए थे और वहां जाकर वेनिस शहर बसाया।
यह वैनिटी लोगों के नाम पर से ही वेनिस शहर का नाम पड़ा है, इनफैक्ट करीब 1000 साल तक
यह वेनिस अपने आप में एक राष्ट्र था लेकिन बाद में साल 1866 में इटली का अंग बन गया।

कैसे हुआ वेनिस इटली में शामिल ?

19वीं सदी में “इटली का एकीकरण” (Italian Unification या Risorgimento) चल रहा था, जिसमें छोटे-छोटे राज्य और क्षेत्र मिलकर एक संयुक्त इटली बना रहे थे।उस समय वेनिस ऑस्ट्रियाई साम्राज्य (Austrian Empire) के नियंत्रण में था। 1866 में इटली ने प्रशिया के साथ मिलकर ऑस्ट्रिया से युद्ध किया जिसे “तीसरा इटालियन स्वतंत्रता संग्राम”( Third Italian War of Independence ) कहा जाता है। इस युद्ध के बाद, “वियना की संधि” (Treaty of Vienna 1866) के अंतर्गत ऑस्ट्रिया ने वेनिस को फ्रांस को सौंपा और फ्रांस ने इसे इटली को सौंप दिया !

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