बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब बात बाहुबल की होती है, तो कुछ नाम खुद-ब-खुद सामने आ जाते हैं। उन्हीं में से एक नाम अनंत सिंह का है जिन्हें उनके समर्थक आज भी “छोटे सरकार” कहते हैं।
पटना से सटे मोकामा के रहने वाले अनंत सिंह एक ऐसा नाम हैं जिनकी पहचान न तो सिर्फ एक विधायक की है, न ही सिर्फ एक बाहुबली की है बल्कि वे इन दोनों छवियों के मेल का प्रतीक हैं। वे जेल में हों या बाहर लेकिन ख़बरों में हमेशा बने रहते हैं और बिहार की राजनीति में किसी भी दल के लिए उनके नाम से दूरी बना पाना आसान नहीं होता है।
अपराध से राजनीति की ओर हुई यात्रा की शुरुआत।
अनंत सिंह की कहानी अपराध और राजनीति के उस मोड़ से शुरू होती है, जहां पारिवारिक बदले ने उन्हें अपराध के रास्ते पर डाल दिया। बताया जाता है कि उनके बड़े भाई रंच सिंह की हत्या के बाद, अनंत सिंह ने खुद बदला लिया। स्थानीय लोग जैसा बताते हैं इस कहानी के अनुसार, वे नदी तैरकर पार गए और भाई के हत्यारे को ईंट-पत्थर से मार डाला।
इस घटना के बाद भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि उनके दूसरे भाई दिलीप सिंह का मजबूत राजनीतिक रसूख था। दिलीप सिंह कांग्रेस विधायक श्याम सुंदर सिंह धीरज के बेहद करीबी माने जाते थे।
अनंत सिंह को प्राप्त था राजनीतिक संरक्षण।
1990 में जब दिलीप सिंह खुद जनता दल से मोकामा के विधायक बने और लालू यादव मुख्यमंत्री बने तो अनंत सिंह को राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा। दिलीप सिंह मंत्री बने और “बड़े सरकार” कहे जाने लगे एवं अनंत सिंह ने अपराध के क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दिए। राजनीति ने उन्हें ताकत दी और अपराध ने डर का वो माहौल रचा जिससे वे उस इलाके में धीरे-धीरे “छोटे सरकार” कहलाने लगे।
नीतीश कुमार की मदद से हुआ अनंत सिंह का राजनीति में प्रवेश।
1996 में जब नीतीश कुमार और लालू यादव के रास्ते अलग हुए तो नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया। ऐसे में उन्हें मोकामा जैसे इलाके में अनंत सिंह जैसे व्यक्ति की ज़रूरत महसूस हुई। अनंत सिंह ने भी उनका साथ दिया और पहली बार उन्हें सत्ता के दरवाजे तक पहुँचाने में मदद की। लेकिन इस गठजोड़ की भनक जब लालू यादव को लगी थी तो उन्होंने एसटीएफ से अनंत सिंह की कोठी पर छापा डलवाया। जवाबी कार्रवाई में अनंत सिंह के आठ आदमी मारे गए और एक पुलिसकर्मी भी शहीद हुआ तथा अनंत सिंह फरार हो गए।
2005 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए और इस बार नीतीश कुमार ने अनंत सिंह को मोकामा से जेडीयू का टिकट दिया। अनंत सिंह चुनाव जीते और पहली बार विधायक बने और इस जीत ने उन्हें कानूनी ताकत भी दे दी।
2010 में फिर से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। अब वे सिर्फ बाहुबली नहीं थे, बल्कि स्थायी विधायक बन चुके थे। लेकिन राजनीति में लंबे समय तक गठजोड़ नहीं टिकते। एक वायरल तस्वीर, (जिसमें नीतीश कुमार उनके सामने हाथ जोड़े खड़े थे) ने नीतीश की छवि को धक्का पहुँचाया। राजनेता अक्सर आपसी या जनता से मिलने के क्रम में हाथ जोड़ते हैं तो ये कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन फजीहत होने के बाद नितीश कुमार ने दूरी बनानी शुरू कर दी और दोनों के रास्ते अलग हो गए।
2015 में निर्दलीय जीता विधानसभा चुनाव।
2015 में जब नीतीश और लालू ने महागठबंधन किया, ऐसा कहा जाता है कि अनंत सिंह इससे आहत हुए। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मोकामा से चुनाव लड़ा और फिर जीत गए। जनता ने साफ संदेश दे दिया कि अनंत सिंह का वर्चस्व सिर्फ पार्टी का मोहताज नहीं है।
2019 में कांग्रेस का दामन थामे लेकिन हुई हार तथा कई मामलों में हुई क़ानूनी करवाई।
2019 में उन्होंने कांग्रेस का साथ लिया और अपनी पत्नी नीलम सिंह को मुंगेर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन वे ललन सिंह से हार गईं जो नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं। अब अनंत सिंह और नीतीश कुमार की दूरी बढ़ चुकी थी।
नीतीश कुमार ने भी अब अनंत सिंह को सबक सिखाने के लिए तैयार थे। 2020 के चुनावी आवेदन के अनुसार उनके खिलाफ लगभग 7 हत्या,11 हत्या के प्रयास,4 अपहरण जैसे मामले दर्ज थे। अबतक कई मामलों पर नितीश कुमार चुप्पी साधे हुए थे लेकिन फिर करवाई हुई और उनके मोकामा स्थित आवास पर छापा पड़ा, जहां से AK-47, हैंड ग्रेनेड, और मैगजीन बरामद किए गए। उन पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। अनंत सिंह दिल्ली जाकर कोर्ट में सरेंडर हुए और उन्हें बेऊर जेल भेजा गया।
2020 में वह राजद (RJD) के टिकट पर चुनाव जीते लेकिन 2022 में AK-47 और हथियार बरामदगी मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उनकी सदस्यता रद्द हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी नीलम सिंह राजद के टिकट पर मोकामा से उप चुनाव लड़ी और जीत दर्ज की तथा यह साफ कर दिया कि अनंत सिंह का स्थानीय जनाधार अब भी मजबूत है।
अनंत सिंह की कहानी का अंत शायद “अनंत” है।
अनंत सिंह की पहचान सिर्फ अपराध और राजनीति से नहीं जुड़ी है बल्कि उनके रंगीन किस्से भी कम नहीं है। अजगर पालने, लालू यादव का घोड़ा खरीदने, हथियार लहराकर वीडियो बनाना, घोड़ा गाड़ी में म्यूजिक सिस्टम लगवाना, सिर पर हैट, आंखों पर काला चश्मा और फिल्मी अंदाज में निकलना यह सब उन्हें एक “गैंगस्टर सुपरस्टार” की छवि देता है।
उन पर भोजपुरी फिल्म भी बनाने की कोशिश की गई थी, जिसमें गाने उनके जीवन से प्रेरित थे।
अनंत सिंह की कहानी सिर्फ एक अपराधी की नहीं है बल्कि यह बिहार के उस स्याह सच की कहानी है, जहां राजनीति और अपराध का फर्क मिट जाता है। वे आज भी “छोटे सरकार” हैं, चाहे सत्ता में हों या जेल में, उनकी मौजूदगी सत्ता समीकरणों को प्रभावित करती है। बिहार में गठबंधन बदलते रहते हैं, मगर कुछ चेहरे हैं जो हर सत्ता में फिट बैठ जाते हैं और अनंत सिंह उन चेहरों में से एक हैं।
अब बिहार फिर से नए राजनीतिक मोड़ पर है और 2025 विधानसभा का चुनाव का चुनाव होने वाला हैं। अनंत सिंह का नाम फिर चर्चा में है क्योंकि उन्हें जमानत मिली है। मीडिया के सामने उन्होंने जेडीयू से फिर चुनाव लड़ने की बात कही है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कामों की तारीफ किए तथा कहा कि नीतीश जी ही अभी बिहार का नेतृत्व करेंगे। क्या वे फिर से चुनाव लड़ेंगे या नीलम सिंह ही विधायक बनेंगी ये सब अभी भविष्य के गर्भ में है। “अनंत” का अर्थ है जिसका अंत न हो और ये फिलहाल तय है कि अनंत सिंह की कहानी अभावखत्म नहीं हुई है।